सरकार का तर्क है कि एमएसपी बढ़ाने से फ़सलों की विविधता बढ़ेगी. लेकिन कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार ने किसानों को बेहतर विकल्प नहीं दिए हैं.
शर्मा कहते हैं, "बिहार में सबसे ज़्यादा मक्का बोई जाती है. वहां किसानों को मक्का के दाम एक हज़ार से लेकर 1100 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रहे हैं. 1850 रुपये की एमएसपी होने के बावजूद किसानों को भारी नुक़सान हो रहा है. जब हम किसानों को धान के विकल्प में कोई ऐसी फ़सल नहीं दे रहे हैं जिससे उनकी आमदनी बढ़े तो फिर किसान धान बोना कैसे कम करेंगे."
लेकिन राजिंदर सिंह कहते हैं, "केंद्र सरकार दबाव में है. इस आंदोलन ने केंद्र सरकार को राजनीतिक नुक़सान पहुँचाना शुरू कर दिया है. उदाहरण के तौर पर सरकार ने डीएपी के दाम बढ़ाए थे. एक बोरी पर सरकार ने 700 रुपये क़ीमत बढ़ाई थी लेकिन किसानों के आंदोलन की वजह से सरकार को ये बढ़ोतरी वापस लेनी पड़ी और पौने पंद्रह सौ करोड़ रुपये की सब्सिडी और देनी पड़ी. सरकार पूरी तरह कॉर्पोरेट के साथ खड़ी है."
एमएसपी बढ़ाने को सरकार की किसानों को साधने की कोशिश के तौर पर भी देखा जाता है. चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में किसान बड़ा वोट बैंक हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार किसानों को रिझाने के प्रयास कर सकती है.लेकिन कृषि विशेषज्ञ सुधीर पंवार का कहना है कि सरकार को वोट बैंक के तौर पर किसानों की बहुत परवाह नहीं है.
किसान नेता राजिंदर सिंह दीपसिंहवाला कहते हैं, "जहां तक आमदनी दोगुनी करने का मामला हो वो सरकारी की बस एक नौटंकी है. उदाहरण के तौर पर यदि एक किसान पाँच हज़ार कमा रहा है तो उसकी दोगुनी आमदनी सिर्फ़ दस हज़ार ही होगी. सरकार के इस ढकोसले से किसान को कोई फ़ायदा नहीं होने जा रहा है."हरविंदर सिंह बरार कहते हैं, "गेहूं और धान को छोड़कर बाक़ी किसी फ़सल की एमएसपी पर ख़रीद नहीं हो पाती है. एमएसपी का क़ानूनी अधिकार किसानों को मिलना चाहिए.
यही तो वो कील है जो यूपी चुनाव में बीजेपी को धंस सकती है क्योंकि कि राकेश टिकैत भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही हैं।
फसल मूल्य में बढ़ोतरी या अन्य प्रकार की दी गई रियायत सब कुछ बेमानी लगती है जब तक धरातल पर किसान के हक को बिचौलिए और व्यापारी मिलकर मार लेते हैं गेहूं खरीद में यही आलम देखने को मिल रहा है किसान परेशान है साठघाट से व्यापारी और बिचौलिए लूट मचा रहे हैं
अब इस पर क्या कहेंगे आप... क्या वाकई MSP में वृद्धि हुई है ? FarmerProtests
M s p par kharidta kaon hai sabhi bhrastachari hai
किसान राष्ट्र की शान
देश के हम भंडार भरेंगे लेकिन कीमत पूरी लेंगे
एमएसपी का रेट किसानों को मिलता ही नहीं है खाते में पैसा तो एमएसपी का आता है लेकिन उसके बाद कमीशन खोरी में चला जाता है
किसानों का असंतोष नहीं, दलालों वह ठेकेदारों का असंतोष है जो ठीक नहीं किया जा सकता।
हमारे देश के नागरिक बड़े माशूम है जनाब ,जो नेता उन्हें झुनझुना पकड़ा देता है उशी को वह अलाउद्दीन का चिराग समझ लेते है ,अब भी समय है जागे और जगाये ।
Bdk सब कुछ हम ही लोगों से पूछता है तु भी कुछ बतादे
Farmers are happy ...its cheap leaders who will never happy.
यूपी में किसानो का कर्ज माफ हो। 2022 में
Kon kishan ?
किसान संतुष्ट है सरकार की नजर में अब मियां खलीफा जैसे किसान न कभी संतुष्ट हो पाए है ना कभी हो पाएंगे ।
किसान एकता जिंदा बाद
विश्वविद्यालय प्रशासन प्रथम समेस्टर वालों को उलझा के रखा है।2022 में हमलोगों का सेशन खत्म होगा,अभी तक प्रथम से.का भी परीक्षा नहीं हुआ। चारों सेमेस्टर का एक्जाम बचा हुआ है।जब आप आॅनलान परीक्षा ले रहे थे तो रद्द काहे किये।अब बहुत देर हो चुका। अब बस प्रमोट.. AuPromote1stYear1stSem
बिलकुल नहीं
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