मानव विकास सूचकांक और ग्लोबल हंगर इंडेक्स से जूझते भारत के सामने कोरोना की चुनौती

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कोरोना वायरस ने कैसे भारत में आर्थिक असमानता का सच उजागर किया? COVID19India CoronaUpdatesInIndia

मयंक तोमर महान दार्शनिक रूसो ने कहा था कि ‘कोई भी नागरिक कभी भी इतना समृद्ध नहीं होना चाहिए कि वह दूसरे नागरिक को खरीद सके, और कोई भी नागरिक इतना गरीब नहीं होना चाहिए कि वह खुद को बेचने को मजबूर हो जाये।’ पर बीते समय में कोरोना वायरस का भारत और विश्व पर प्रहार इतना क्रूर था कि मानवीय संवेदनाओं के यह सिद्धांत उलट गए। भारत में कोरोना का पहला मरीज़ 30 जनवरी को केरल में मिला। तब से अब तक साढ़े चार माह के समय में तैयारियों का आकलन करें तो यह तैयारियां बढ़ती ज़रूरतों से कम दिखती हैं। नतीजतन प्रतिदिन...

विवश किया? यकीनन वे रोजी-रोटी गाँव में खोजने में असमर्थ थे, यही वजह थी उनके अनियोजित पलायन की। ये वही लोग हैं जिनकी नोट बंदी के दौर में अभी दो वर्ष पहले ही आर्थिक कमर बिलकुल टूट चुकी थी और ये अपने अच्छे दिनों का जो कुछ अर्जित था उसे गंवा चुके थे। अब इस लॉकडाउन ने उनको और भी बुरी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है जिससे ये अब शहरों में फंसे है। कोरोना काल में विगत दो महीनों से इनको घर भेजने की कवायद चल रही है जो लगता नहीं जल्दी ख़त्म होने वाली है। आज जिम्मेदारी और हिस्सेदारी में संतुलन बैठाने का समय...

 

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जब भारत में वोट लेकर सरकार बनेगी तो यह हमेशा भेदभाव और गरीब ही रहेगा क्योंकि गद्दी पर बैठने वाले हमेशा लूटते ही रहते हैं और उनको कुछ कहना किसी के हिम्मत में नहीं है।

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