यह पूर्णरूप से सत्य है कि मां, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो कोई महिला कितनी भी श्रेष्ठ एवं सुंदर हो वह हमारी मां नहीं हो सकती। कोई देश कितना भी संपन्न एवं समृद्ध हो, परंतु वह हमारी मातृभूमि नहीं हो सकता। इसी प्रकार विश्व की अन्य कोई भी भाषा हमारी मातृभाषा नहीं हो सकती। इसे बांग्लादेश के लोगों ने सिद्ध किया है।
14 अगस्त, 1947 को भारत से अलग होकर पाकिस्तान स्वतंत्र देश बना तब पाकिस्तान के दो भाग थे। 1971 में पाक का विभाजन हो गया। पाकिस्तान से अलग होकर पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना। बांग्लादेश बनने का महत्वपूर्ण कारण भाषा बनी। पूर्वी पाकिस्तान की भाषा बांग्ला थी, लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन शासकों ने उस पर उर्दू थोपी, जिसका वहां जबरदस्त विरोध हुआ।21 फरवरी, 1952 को ढाका विश्वविद्यालय, जगन्नाथ विश्वविद्यालय और चिकित्सा महाविद्यालय के छात्रों ने बांग्ला को वहां की राष्ट्रभाषा घोषित करने के लिए आंदोलन...
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि भाषा मात्र संप्रेषण का माध्यम है। वहीं यूनेस्को के अनुसार भाषा मात्र संपर्क, शिक्षा या विकास का माध्यम न होकर व्यक्ति की विशिष्ट पहचान और उसकी संस्कृति, परंपरा एवं इतिहास का कोश है। इसके साथ ही सांस्कृतिक मूल्यों की विरासत को संजोने का कार्य भी मातृभाषा ही करती है। बांग्लादेश में हुए उस आंदोलन ने भी यह बात सिद्ध की कि मातृभाषा का महत्व मजहब, जाति आदि से भी अधिक है। जब कहीं कोई भाषा विलुप्त होती है तो उसके साथ एक संस्कृति और परंपरा पर भी पूर्ण विराम लग जाता...
कुछ विद्वानों का मानना है कि मां की भाषा ही मातृभाषा है। यह पूर्ण सत्य नहीं है, मां की भाषा के साथ-साथ बच्चे का शैशव/बचपन/बाल्यावस्था जहां बीतता है, उस माहौल में ही जननी भाव होता है। जिस परिवेश, परिवार एवं उसके सांस्कृतिक मूल्यों में बच्चे पलते हैं, वहां जो भाषा वह सीखता है वह भाषा उस बच्चे की मातृभाषा कहलाती है। इस प्रकार मातृभाषा मात्र भावनात्मक विषय नहीं है, परंतु पूर्णरूप से वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। इस दृष्टि से शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में हो, यह जरूरी है।यूनेस्को सहित वैश्विक स्तर पर भाषा...
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