के बाद उनकी पत्नी के क्षोभ को जो सार्वजनिक समर्थन मिला, उससे विचलित होकर उत्तर प्रदेश सरकार ने उस कार्रवाई में शामिल पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है.
लेकिन मीडिया हो या हम सब, हम दया उपजाने और दया पाने की दीनता के अधिकारी ही माने जाते हैं, अधिकारसंपन्न संप्रभु जन नहीं. जब सरकार का प्रसाद हो, वह हम पर अनुकंपा करती है. यहां मनीष के बच्चे का क्या होगा, यह बार-बार पूछा गया! कुछ लोग गलत या सही एक वीडियो दिखला रहे हैं जिसमें मनीष गुप्ता की पत्नी को बाकायदा शिकायत करने से रोकने की कोशिश प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी कर रहे हैं. वह तो भला हो उनके सही नाम और कुलनाम का कि ‘जनता’ ने पत्नी का साथ दिया और सरकार को न्याय का आश्वासन देना पड़ा.
लेकिन उसके भी पहले हमें वह पूछना चाहिए, जो पुलिस अधिकारी रह चुके एनसी अस्थाना साहब ने पूछा: ‘पुलिस को किस कानून के तहत यह अधिकार है कि किसी होटल में रात को किसी के कमरे में ज़बरदस्ती घुस जाए? ये बहाना नहीं चलेगा कि अपराधियों के होने की सूचना थी क्योंकि कोई मिला नहीं है. ऐसे तो कल को किसी के घर में भी घुस सकते हैं. खड़क सिंह 1962 में स्पष्ट आदेश है कि ऐसा नहीं कर सकते.’
फौरन इंसाफ होना चाहिए, जिसे हम मुजरिम मानते हैं, उसे सजा देने का हमें हक़ है: इस समझ का फायदा उठाकर पुलिस हमारी तरफ से न्याय दिलाने के नाम पर ‘काम’ करती है. जब तक वह हमारे अपराधियों को ‘ठीक’ करती रहती है, हम उसकी पीठ थपथपाते हैं, भले ही ऐसा करते हुए वह हमारे संवैधानिक अधिकारों को हमसे छीनती होती है. पिछले सालों में हमने ऐसे नारे सुने हैं, ‘दिल्ली पुलिस लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.’ कौन हैं जिनकी ओर से लट्ठ बजाने का काम पुलिस कर रही थी? इसके पहले ऐसे ही नारे हरियाणा में सुनाई दिए थे. कौन थे जो पुलिस को अपना बतला रहे थे?
यह एक संवैधानिक पद पर पर बैठे व्यक्ति के द्वारा संविधान की खुलेआम हत्या थी. लेकिन न गुजरात की ‘जनता’ को दिक्क्त थी न भारत की.
न ये गोबर प्रदेश है। सांड इनका बाप है ,सड़क पर गू ,पन्नी ,कचरा खाती गाय इनकी मा। दुसरो की बछिया इनकी संपत्ति,जिन पर इनका पैदायशी सांड वाला हक है। गौमूत्र इनका पेय है। एक बड़ा मूर्खो का भाजपाई दुष्प्रचार का शिकार जानवर पुत्र वर्ग यहां पर हावी है।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं मजबूत तब रहती है जब जनता संविधान पढ़ती हो समय किसके पास है मध्यम वर्गीय की सोंच कमाने तक सिमित निम्न वर्गीय की सोंच फ्री तक सिमित ये दोनों अपनी समस्या का समाधान कभी मूर्ख परिवारवादीयों तो कभी धर्म जाति के पाखंडी अमीरों में खोजते है इसलिए नेता मस्त जनता पस्त
Ye kbhi nhi ho skta
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