भारत में घरेलू काम को पारंपरिक तौर पर महिलाओं की ज़िम्मेदारी माना जाता है
क्या बेहूदा बात है? क्या पुरुष अपने अकेले के लिए कमाता है। नौकरी या व्यापार करता है। जिस तरह पुरुष पैसा कमा कर घर चलाता है उसी तरह महिला घर का काम करके घर चलाती है, इसमे वेतन की बात कहाँ से आ गई। परिवार बनाने और चलाने के लिए भी वेतन चाहिये तो फिर शादी मत करो।
कुछ कार्य व्यक्तिगत होते है हाँ जबरदस्ती गलत है मगर घरेलु कार्य के लिए वेतन हास्यादप द है कल को आप कहेंगे महिलाओ को बच्चे जनने के लिए छतिपूर्ति राशि दें। मुझे लगता हैं महिला शशक्ति करण अब चरम पर पहुँच रहा है जहाँ महिलाओ द्वारा कही गयी हर सही गलत बात को सही ठहरा दिया जाता हैं
पति की कमाई से महिलाओं को वेतन दिया जाना एक बेतुका ख्याल है पैसे खर्च तो घर गृहस्थी में ही होंगे ,ऐसा तो हो नहीं सकता कि बच्चों की स्कूल फीस न देकर महिलाएं अपना साज-श्रृंगार करेंगी या कुछ और करेंगी| हाँ अगर सरकार घरेलू महिलाओं को वेतन दे तब तो कोई बात भी है |
जो महिलाएँ पति के साथ नहीं वो मायके बैठी या गैर के साथ रहती;उनको पति से गुजारा भत्ता दिलाया जाता क्यों? *घरेलू काम काज कर कही भी तनख्वाह पा सकती? सरकार पति के विरूद्ध सत्ता की शक्ति का दुरुपयोग कर रही? पुरूष के साथ तानाशाही हो रही देश लोकतंत्र की जगह पत्नीतंत्र हो गया?
तुम अपनी मां,बहन, बेटी और पत्नी की कीमत लगा सकते हो लेकिन हिन्दुस्तान में ना कभी ऐसा हुआ है और ना ही होगा यहां रिश्ते प्यार,लगाव, अपनापन ओर संस्कारों के होते हैं पश्चिम की तरह पैसों के नहीं होते। यहां पर घर की नारी सरस्वती, लक्ष्मी, और दुर्गा का रूप होती है और घर की शान होती है।
jo unpe kharch hota hai wo sab kat kata ke aur husband ko hi dena pad jayega
वो क़यामत थी कि रेज़ा रेज़ा हो के उड़ गया ऐ ज़मीं वर्ना कभी इक आसमाँ मेरा भी था अब्दुल्लाह कमाल
Ye bhee new budget mein add hoga kya?
26 जनवरी की ट्रेक्टर रैली छोटे किसान चाहें वो दलित हो या मुसलमान सबके सीने पर चलने वाली है, ज्यादातर छोटे किसान दलित, मुसलमान, ओबीसी हैं जिनको नए क़ृषि बिल से उम्मीद दिखी थी और इन पंजाब हरियाणा के पूंजीपतियों ने उनकी उम्मीदों,उनके सीनो पर यह रैली करने का फैसला किया हैं
Bbc will give
तुम अपनी मूर्खता कब छोड़ोगे।
मेहनताना उनके प्रति श्रद्धा,प्यार,समर्पण द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है।
उनको पहले से ही है, पति के संपति पर अधिकार। मुझे ऐसा कहने मे बहुत दुख हो रहा है। क्योंकि यहां प्रेम और दायित्व का मोल लगाया जा रहा है। वैसे मैं भाग्यशाली हूं कि मेरी पत्नी प्रेम और दायित्व को समझती है। इसलिए मेरा सारा जीवन उनके लिए है। ये आपके अती बुद्धिजीवी विचार हमपर ना थोंपे।
वास्तव में लैंगिक समानता एक अव्यवहारिक सिद्धांत है, क्योंकि जब पुरुष और महिला की प्राकृति में भारी असमानता है फिर दोनों में तुलना अप्रासंगिक हो जाता है।
Working Husband ko paisa dena hai, woh tay katega
1 lakh par month
Desh me aag lagne ke baad BBC ab logo ke gher me aag lagaane ki taiyaar ker rahi h.
मोल तो समाज लगाए... घर परिवार तो.. हिसाब में आए.. भेद में विचार तो .. समाज में कराए.. किरदार तो .. रिश्ते का भेद ना दिखाए..💥
पति की आधी संपत्ति पर हक़.!!
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