इन मेहमानों का स्वागत करते हैं धरती और आकाश के बीच में उड़ने वाले ढेर सारे परिंदे। लेकिन पिछले महीने पतंगों के उत्सव के दिन लगा कि पतंगों ने आकाश को घेर लिया है और स्वागत के आकांक्षी परिंदों को उनके स्थान से खदेड़ दिया है। आजादी का जश्न मनाने का एक यह तरीका भी लोगों ने ईजाद कर लिया है। ऐसे लोगों को यह पता नहीं कि दूसरे की आजादी छीन कर अपनी आजादी का जश्न नहीं मनाना अपनी आजादी को भी दायरे में कैद करना है। भले ही हम कमजोर बेजुबान पक्षियों की आजादी या उनके जीने के अधिकार को ही क्यों न...
बात सिर्फ किसी एक साल की नहीं है। हर साल ऐसा ही देखने को मिलता है। जश्न मनाने के दौरान उड़ रही पतंगों के बीच ढेर सारे पक्षी मांझे की चपेट में आकर घायल हो जाते हैं। कितने मर भी जाते होंगे। मांझे वाले धागे से तो इंसानों की मौत की खबरें आती रहती हैं। इस वर्ष भी उस शाम जब मैं अपनी छत पर चढ़ी तो पूरा आसमान पतंगों से अटा पड़ा था। पतंगों की पहुंच से काफी ऊपर ढेर सारी चीलें उड़ रही थीं। मगर एक कौवा इस इमारत से उस इमारत बेचैन होकर उड़ रहा था। उसने मेरी छत पर लगे पाइप पर बैठने की कोशिश की, मगर क्षण भर भी नहीं...
दरअसल, विकास के साथ मनुष्य द्वारा निर्मित आधुनिक दुनिया में प्रकृति और उसके बाशिंदों के लिए कहीं कोई जगह ही नहीं है। मनुष्य जैसे-जैसे अधिक सभ्य होने का दावा करता रहा है, वैसे-वैसे उसका आचरण अधिक बर्बर और असभ्य हुआ है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब आॅस्ट्रेलिया में दस हजार ऊंटों को सिर्फ इसलिए मार डाला गया कि वे ज्यादा पानी पीते थे। हमारे देश में बंदरों को लेकर भी ज्यादती भरी सोच ही है। जबकि मनुष्य द्वारा भोजन पानी की अथाह बर्बादी पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। आज महानगरों में बन रहे अपार्टमेंट और...
उत्तर प्रदेश के नोएडा में एक जगह रविवार का बाजार लगता है। देर रात बाजार बंद होने के बाद ढेर सारी सड़ी-गली सब्जियां सड़क पर फेंंक दी जाती हैं। आसपास कहीं रहने वाला एक बूढ़ा व्यक्ति अगली सुबह वहां एक बड़ा थैला लेकर पहुंच जाता है। वह बची-खुची सब्जियों को थैले में भर कर उन्हें ले जाता है। पूछने पर उसने बताया, इस मोहल्ले में गायें पॉलिथीन में बांध कर फेंकी गई सब्जियां, छिलके खाने के चक्कर में पॉलिथीन खा लेती हैं, जिससे वे बीमार हो जाती हैं। मैं उन्हीं गायों को सब्जियां खिलाने जाता हूं। उसकी बात सुन कर...
दरअसल, सारी दिक्कत तब पैदा होती है जब किसी चीज की अति होती है। अति से शौक और परंपराएं उन्मादी रूप धारण कर लेती हैं और अपने मूल सौंदर्य को खोकर विकृत हो जाती हैं। फिर ये सुख का कारण न होकर कष्ट पहुंचाने लगती हैं। यही सब हो रहा है हमारे उत्सवों और त्योहारों के बीच मनाए जाने वाले जश्न में। आजादी जैसा पर्व भी सरोकारों से दूर होकर क्षणिक शोर-शराबे में तब्दील हो चुका है। कितने पक्षी जानवरों के साथ ही इंसान भी खतरनाक मांझे की चपेट में आकर घायल हो जाते हैं, मगर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे जश्न और...
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