सुबोध कुमार सुबह छह बजे अपना काम शुरू कर देते हैं. सबसे पहले उन लोगों की जाँच करते हैं, जिनमें कोरोना के लक्षण दिखते हैं.
साल 2020 में बिहार सरकार ने इस तरह के लगभग 20 हज़ार झोला छाप डॉक्टरों को एनआईओएस के साथ मिलकर ट्रेनिंग दिलवाई. इसके बाद इन्हें कम्युनिटी हेल्थ सर्टिफ़िकेट कोर्स पूरा करने का प्रमाणपत्र दिलवाया गया. कोरोना संकट से पूरे भारत में हाहाकार मचा हुआ है. बिहार इस संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है. राज्य डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है.
भारत के गाँव-देहात कोरोना संक्रमण की पहली लहर से मोटे तौर पर अछूते रहे थे लेकिन दूसरी लहर ने ग्रामीण इलाक़ों में तबाही मचाई हुई है. बिहार में भी कोरोना संक्रमण की स्थिति काफ़ी ख़राब है और ज़िला अस्पताल मरीज़ों से भरे पड़े हैं. डॉक्टरों के मुताबिक़ कोरोना संक्रमण और मौतों का वास्तविक आँकड़ा सरकारी आँकड़ों से दस गुना या इससे भी अधिक हो सकता है. कई गाँवों में तो लोगों को कोरोना संक्रमण का टेस्ट कराने के लिए भी ब्लॉक लेवल पर बने प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों पर जाना पड़ता है.इमेज स्रोत,पिछले 18 साल से आसपास के गाँव के लोग सुबोध कुमार से ही इलाज कराने के लिए आते हैं. साल 2011 में कोइलवर शहर की जनसंख्या 17,725 थी. कुमार के मुताबिक़ कोइलवर में ऐसी क़रीब 10 डिस्पेंसरी हैं.
एसोसिएशन ने 15 अप्रैल को बिहार के उप-मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा मुहैया कराने का प्रस्ताव रखा था ताकि कोरोना की दूसरी लहर को क़ाबू किया जा सके.
😂
इन्ही झोला छाप लोगों नें गावों में मेडिकल सेवा अब तक दी है । MBBS में 80 लाख से 1 करोड खर्च करके कौन बेवकूफ गाँव में दवाखाना खोलेगा । MBBS करना है तो अमिर होना जरूरी है या फिर सिफारीश वाली चिठ्ठी होनी चाहिए । अपवाद में ही कोई गरीब MBBS कर पाता है । narendramodi
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।