बाजी पलट गई है! ट्रैक्टर रैली में मचे उपद्रव के बाद अपने घरों को रवाना हुए एक लाख किसान
26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली में भाग लेने के लिए किसानों ने जो तेजी दिखाई थी, अब उसी रफ्तार से वे अपने घरों के लिए रवाना हो
योगेंद्र यादव और राकेश टिकैत जैसे मीडिया फेस भी मुश्किल में फंस सकते हैं। इनका नाम भी एफआईआर में लिखा है। लाल किला पर हुए उपद्रव के बाद मंगलवार की रात और बुधवार को करीब एक लाख किसान अपने ट्रैक्टर लेकर घरों की ओर चल पड़े हैं। जानकारों का कहना है कि लालकिला उपद्रव के बाद बाजी पलट गई है। अभी सरकार का पलड़ा भारी हो गया है। केंद्र सरकार, आक्रामक मूड में है, अब बातचीत होगी या नहीं, तय नहीं है।
किसान संगठनों द्वारा गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की घोषणा करने के बाद 22 जनवरी से 24 जनवरी के बीच करीब डेढ़ लाख किसान अपने ट्रैक्टर लेकर दिल्ली सीमा पर पहुंच गए थे। इनमें से अधिकांश ट्रैक्टर पंजाब के इलाकों से आए थे। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी ट्रैक्टर दिल्ली पहुंचे थे। दो किसान नेता, जिनका अपना संगठन है और वे इस आंदोलन में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले काम कर रहे थे, का कहना है कि सरकार जो चाहती थी, वैसा हो गया है। अब आरोप और प्रत्यारोप का कोई मतलब भी नहीं है।
लाल किला उपद्रव मामले में भले ही किसी भी संगठन का हाथ हो, मगर उसकी जिम्मेदारी से किसान नेता भाग नहीं सकते। भारतीय किसान यूनियन के कई बड़े संगठनों में कथित तौर पर फूट पड़ गई है। हरियाणा सरकार ने सभी धरना स्थलों पर सख्ती बढ़ा दी है। खासतौर पर करनाल टोल प्लाजा के पास लगा लंगर हटवा दिया गया है। दूसरे इलाकों से भी किसान वापस लौट रहे हैं। टोल प्लाजा से भी किसानों को हटाया जा रहा है। headtopics.com
हरियाणा के रोहतक, पानीपत, जींद, झज्जर, रेवाड़ी, भिवानी, कैथल, अंबाला और फतेहाबाद की ओर बुधवार को हजारों ट्रैक्टर वापस जाते हुए दिखाई दिए। पंजाब से जो किसान 23-24 जनवरी को इन जिलों से होते हुए दिल्ली पहुंचे थे, अब उन्होंने घर का रुख कर लिया है। राजस्थान किसान संगठन के एक नेता ने कहा, किसान आंदोलन में शुरू से ही विभिन्न संगठन एकमत नहीं थे। कई संगठन तो बीच में अलग हो गए थे।
योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत, बलदेव सिंह, किसान मजदूर संघर्ष समिति के सतनाम सिंह पन्नू, गुरनाम सिंह चढूनी, सरदार वीएम सिंह, दर्शनपाल, जोगिंदर सिंह उग्रहा व बलबीर सिंह रजेवाल आदि के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं थी। पिछले दिनों जब एक प्रेसवार्ता में युद्धवीर सिंह को बैठाया गया, तो गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन की कमान संभाल रहे एक बड़े नेता को वह सब पसंद नहीं आया था। एक फरवरी के पैदल मार्च को लेकर भी किसान संगठनों में समान राय नहीं थी।
पंजाब के एक युवा किसान नेता जो सरकार के साथ वार्ता में शामिल रहे हैं, उन्होंने भी एक इशारे में बहुत कुछ कह दिया है। उनका कहना था कि अब सरकार का पलड़ा भारी है। किसान संगठनों को अब दो लड़ाइयां लड़नी हैं। जो किसान और संगठनों के पदाधिकारी गिरफ्तार होंगे, उनकी रिहाई के लिए भी कदम बढ़ाना है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के कई सदस्य एक राय लेकर नहीं चल सके। समिति के वरिष्ठ सदस्य सरदार वीएम सिंह शुरुआत में ही आंदोलन से अलग हो गए थे। इस समिति में अविक साहा, आशीष मित्तल, अतुल अंजान, हन्नान मौला, दर्शनपाल, किरण विस्सा, कविथा कुरुगंती, कोडाली चंद्रशेखर, अयानकानू, राजा राम सिंह, सत्यवान, तेजेंद्र सिंह विर्क, अशोक धावले, वी.वेक्ट्रामयाह, सरदार जगमोहन सिंह, कृष्णा प्रसाद, प्रेम सिंह गहलावत, सुनीलम, मेघा पाटकर, राजू शेट्टी, प्रतिभा सिंधे, जगदीश ईनामदार, योगेंद्र यादव, रामपाल जाट और वीएम सिंह शामिल थे। इन सभी को अलग-अलग राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इनमें भी कई सदस्यों के बीच असहमति का भाव देखा गया है। headtopics.com
कई सदस्य, जो किसान आंदोलन में शामिल रहे हैं, उनकी पटरी राकेश टिकैत से नहीं बैठी। वीएम सिंह और योगेंद्र यादव का टिकैत के साथ कई मसलों पर कथित मतभेद रहा है। पंजाब के कुछ किसान संगठन नहीं चाहते थे कि अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का वर्किंग ग्रुप किसान आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले।
वजह, किसान आंदोलन में पंजाब के लोगों की भारी संख्या रही है। इन सबके बावजूद किसान आंदोलन दो माह तक आगे बढ़ता रहा। लेकिन लाल किला की घटना से अब ये संगठन बैकफुट पर हैं। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में आंदोलन के कई नेता अलग राह पर चले जाएं।सारअब सरकार का पलड़ा भारी है। किसान संगठनों को अब दो लड़ाइयां लड़नी हैं। जो किसान और संगठनों के पदाधिकारी गिरफ्तार होंगे, उनकी रिहाई के लिए भी कदम बढ़ाना है...
विस्तार रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने 22 एफआईआर दर्ज कर उपद्रवियों पर शिकंजा कस दिया है। आरोपी गिरफ्तार किए जा रहे हैं। चूंकि अब किसान संगठनों के उन नेताओं का नाम भी एफआईआर में शामिल हो गया है, जो इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे। इनमें से अधिकांश नेता वे हैं जो सरकार के साथ बातचीत में शामिल थे।
विज्ञापनयोगेंद्र यादव और राकेश टिकैत जैसे मीडिया फेस भी मुश्किल में फंस सकते हैं। इनका नाम भी एफआईआर में लिखा है। लाल किला पर हुए उपद्रव के बाद मंगलवार की रात और बुधवार को करीब एक लाख किसान अपने ट्रैक्टर लेकर घरों की ओर चल पड़े हैं। जानकारों का कहना है कि लालकिला उपद्रव के बाद बाजी पलट गई है। अभी सरकार का पलड़ा भारी हो गया है। केंद्र सरकार, आक्रामक मूड में है, अब बातचीत होगी या नहीं, तय नहीं है। headtopics.com
किसान संगठनों द्वारा गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की घोषणा करने के बाद 22 जनवरी से 24 जनवरी के बीच करीब डेढ़ लाख किसान अपने ट्रैक्टर लेकर दिल्ली सीमा पर पहुंच गए थे। इनमें से अधिकांश ट्रैक्टर पंजाब के इलाकों से आए थे। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी ट्रैक्टर दिल्ली पहुंचे थे। दो किसान नेता, जिनका अपना संगठन है और वे इस आंदोलन में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले काम कर रहे थे, का कहना है कि सरकार जो चाहती थी, वैसा हो गया है। अब आरोप और प्रत्यारोप का कोई मतलब भी नहीं है।
लाल किला उपद्रव मामले में भले ही किसी भी संगठन का हाथ हो, मगर उसकी जिम्मेदारी से किसान नेता भाग नहीं सकते। भारतीय किसान यूनियन के कई बड़े संगठनों में कथित तौर पर फूट पड़ गई है। हरियाणा सरकार ने सभी धरना स्थलों पर सख्ती बढ़ा दी है। खासतौर पर करनाल टोल प्लाजा के पास लगा लंगर हटवा दिया गया है। दूसरे इलाकों से भी किसान वापस लौट रहे हैं। टोल प्लाजा से भी किसानों को हटाया जा रहा है।
हरियाणा के रोहतक, पानीपत, जींद, झज्जर, रेवाड़ी, भिवानी, कैथल, अंबाला और फतेहाबाद की ओर बुधवार को हजारों ट्रैक्टर वापस जाते हुए दिखाई दिए। पंजाब से जो किसान 23-24 जनवरी को इन जिलों से होते हुए दिल्ली पहुंचे थे, अब उन्होंने घर का रुख कर लिया है। राजस्थान किसान संगठन के एक नेता ने कहा, किसान आंदोलन में शुरू से ही विभिन्न संगठन एकमत नहीं थे। कई संगठन तो बीच में अलग हो गए थे।
योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत, बलदेव सिंह, किसान मजदूर संघर्ष समिति के सतनाम सिंह पन्नू, गुरनाम सिंह चढूनी, सरदार वीएम सिंह, दर्शनपाल, जोगिंदर सिंह उग्रहा व बलबीर सिंह रजेवाल आदि के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं थी। पिछले दिनों जब एक प्रेसवार्ता में युद्धवीर सिंह को बैठाया गया, तो गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन की कमान संभाल रहे एक बड़े नेता को वह सब पसंद नहीं आया था। एक फरवरी के पैदल मार्च को लेकर भी किसान संगठनों में समान राय नहीं थी।
पंजाब के एक युवा किसान नेता जो सरकार के साथ वार्ता में शामिल रहे हैं, उन्होंने भी एक इशारे में बहुत कुछ कह दिया है। उनका कहना था कि अब सरकार का पलड़ा भारी है। किसान संगठनों को अब दो लड़ाइयां लड़नी हैं। जो किसान और संगठनों के पदाधिकारी गिरफ्तार होंगे, उनकी रिहाई के लिए भी कदम बढ़ाना है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के कई सदस्य एक राय लेकर नहीं चल सके। समिति के वरिष्ठ सदस्य सरदार वीएम सिंह शुरुआत में ही आंदोलन से अलग हो गए थे। इस समिति में अविक साहा, आशीष मित्तल, अतुल अंजान, हन्नान मौला, दर्शनपाल, किरण विस्सा, कविथा कुरुगंती, कोडाली चंद्रशेखर, अयानकानू, राजा राम सिंह, सत्यवान, तेजेंद्र सिंह विर्क, अशोक धावले, वी.वेक्ट्रामयाह, सरदार जगमोहन सिंह, कृष्णा प्रसाद, प्रेम सिंह गहलावत, सुनीलम, मेघा पाटकर, राजू शेट्टी, प्रतिभा सिंधे, जगदीश ईनामदार, योगेंद्र यादव, रामपाल जाट और वीएम सिंह शामिल थे। इन सभी को अलग-अलग राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इनमें भी कई सदस्यों के बीच असहमति का भाव देखा गया है।
कई सदस्य, जो किसान आंदोलन में शामिल रहे हैं, उनकी पटरी राकेश टिकैत से नहीं बैठी। वीएम सिंह और योगेंद्र यादव का टिकैत के साथ कई मसलों पर कथित मतभेद रहा है। पंजाब के कुछ किसान संगठन नहीं चाहते थे कि अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का वर्किंग ग्रुप किसान आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले।
वजह, किसान आंदोलन में पंजाब के लोगों की भारी संख्या रही है। इन सबके बावजूद किसान आंदोलन दो माह तक आगे बढ़ता रहा। लेकिन लाल किला की घटना से अब ये संगठन बैकफुट पर हैं। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में आंदोलन के कई नेता अलग राह पर चले जाएं।आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है। खबरों को बेहतर बनाने में हमारी मदद करें।
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शहीद पति से हायर रैंक पाने वाली महिला: नक्सली हमले में SI पति शहीद हुए तो लगा सब खत्म हो गया; लेकिन 3 साल के बच्चे और सास-ससुर में उम्मीद जगाकर बनीं ADOP
20 अप्रैल 2000। बालाघाट जिले का चरेगांव थाना। रात में घर और थाने पर पैरलल फोन की घंटी बजी। फोन रिसीव किया। उधर से आवाज आई, कुछ नक्सलवादी डकैती डालने वाले हैं। यह सुनते ही थाना प्रभारी रक्षित शुक्ला ने पिस्टल उठाई और चार आरक्षकों के साथ चल दिए। लौटते वक्त मोड़ पर गोलियों की आवाज आनी शुरू हो गई। नक्सलियों ने टीम पर हमला बोल दिया था। गोली रक्षित के हाथ में लगी। नक्सलियों ने आरक्षक कमल चौधरी को भी निशा... | नक्सली हमले में SI पति के शहीद होने के बाद लगा जैसे सब खत्म हो गया; लेकिन तीन साल के बच्चे और सास-ससुर में उम्मीद जगाकर बनीं एडीपीओ
Hindustan murdabad Pakistan jindabad ssc GD ne hamri jibon ke sath khiloar Kia ndtv पर बीबीसी न्यूज चल रही थी और वोह कह रहे है कि आज अंदोलन में कल से भी ज्यादा किसान धरने पर है क्या वोह झूठ बोल रहे है यां उनकी अंदोलन फ्लाप होता देख फट गई है ? ArvindKejriwal और पत्रकार राजदीप का भड़काऊ बयान फिर हुवा फेल,ये जो फर्जी ख़बर चला रहे है कि,गोली से मारा गया है ये बिल्कुल झूठ है,वह स्वयं स्टंटबाजी करते हुए मरा है,उसका ट्रेक्टर पलट गया था। इस वीडियो से साफ हो जाता है। बाकी पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया?
किराये पर लाये गए लोगों ने जाना ही था। FIR होने के बारे में थोड़े ही बताया गया था उन्हें। ये कैसी headline है ? पत्रकार हो या प्रवक्ता बाजी नही पलटी अब खान्ग्रेस ओर नकली किसानों की फट गई है क्योंकि अब पुलिस अपनी कार्यवाही कर सकती है किसान मत बोलो आतंकवादी थे साले उनका मिशन पूरा हो गया अब अपने घर जा रहे हैं
Riots karne aaye the usi kaise mile the kar diya ab jaa rhe hain wapas. Contract khatam ho gya. अपनी अपनी पतलून बचाओ किसान भाइयों, अब हिसाब भुगतान का वक्त आ गया है, घर नही गए तो नप जाओगे। i m going to unfollow u fake media किसान नहीं दंगाई फेक ख़बर 🏹🏹🎂🎂 काश इन आतंकियों में से कोई भी अपने घर जिंदा न पहुंचे
किसान नहीं हथियार बंद भीड़ थी नुकसान की भरपाई इन्ही से की जाये कठोर कार्यवाही करे केन्द्र सरकार किसानों की चापलूसी बंन्द करें। भारत सरकार। कहा थे बे इतने किसान !!!🤣🤣🤣🤣🤣 बाज़ी पलटी नहीं है उनका उद्देश्य पूरा हो गया, ये सब कुछ पूरी योजना से किया हैं पहले शाहीन बाग, फ़िर दंगे, पहले आंदोलन फ़िर दंगे ये सब prescripted है।
कोई अपने घर नही गया...और कोई अपने घर जाएगा भी नही...जब तक ये काले कानून वापस नही होंगे... केंद्र सरकार को किसानों से माफी मांगनी चाहिए जो उन्होंने किसानों के साथ किया 2 महीने से वह सर्दी में बैठे हुए हैं। रोड पर लेकिन सरकार नहीं सुन रही है।सरकार खुद ही दंगाबाजी करवाती है और गोदी मीडिया उस का साथ देकर यह बोल रही है कि किसान माफी मांगे
येहमारेदेशकागणतंत्रहीहैजोइतनेदिनोंसेइनगद्दारों को किसानबोलरहेथे।इनकाउद्देश्यकभीदेशहितनहींथा।पहलेबोलेचर्चाकरोफिरबोले कुछसंशोधनकरो फिर बोले ट्रैक्टरमार्चनिकालेंगेफिरबोलेसंसदमार्चनिकालेंगे औरअबअपनाअसलीरंगदिखादियाअभीदेखना कैसेइनआतंकवादियोंकेसपोर्टमे पप्पू खुजलीवालऔरबाकी दलालबोलेंगे। You are awarded a special Godi Media award this news.
कामाल करते हो चाटुकार जी.. एक एक बन्दे की गिन्त्र करते हो? तो लगे हाथ यह भी बतादो कल ट्रैक्टर प्रेड में कितने लोग थे। godi media apni chaalon sey bekhabar To those who write these tweet, uparwaaley kaa azaab chal rahaa hai, jhooth Bolney walon ko bhi bakshey gaa nahi, vaccine sey bhi nahi bachegaa. 2 लाख जो और आ गए 🤣🤣🤣🤣🤣 उनका तो बता बे
ये कोई खेल नहीं है फेंकू के खब्बे टटे जो बाजी पलटने की बात कर रहा है दो तीन दिन बाद तुझे फिर विधवा विलाप करना है चापलूस बोरिया बिस्तर समेटने की तैयारी में kisaan यह तो बहुत सुंदर खबर है किसान अपने घर जाएं सरकार कानून लागू करें तभी तो पता चलेगा इसमें क्या अच्छाई है क्या बुराई है किसान नही ये उग्रवादी है
Ye totally fake hai