गीता मोनी मंडल अपने घर में दिन में कई घंटे बिताती है जहां वो इस सर्दी में कई तरह की सब्जियों की खेती कर रही हैं. एक दिहाड़ी मजदूर की पत्नी और दो बच्चों की मां मंडल ने दो साल पहले अपने पति की आमदनी में आई कमी के बाद अपने यार्ड में सब्जियां उगाना शुरू कर दिया था.
देश का दक्षिणी तटीय भाग, जहाँ करीब तीन करोड़ लोग रहते हैं, वह इलाका अक्सर जलवायु से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होता है और लाखों लोगों को वहां से विस्थापित होना पड़ता है. जमीन का एक बड़ा हिस्सा अक्सर जलमग्न हो जाता है. प्रतिकूल जलवायु घटनाओं से महिलाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं. इन क्षेत्रों में महिलाएं ज्यादातर अपनी आजीविका के लिए छोटे पैमाने की कृषि, मवेशी, मुर्गी पालन के साथ ही हस्तशिल्प पर निर्भर हैं. कृषि को प्रभावित करने वाली जलवायु संबंधी समस्याओं के कारण, गरीब परिवारों की महिलाएं खासतौर पर बुरी तरह प्रभावित हुई हैं.
यहां पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों का मतलब है कि महिलाओं की गतिशीलता और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी बहुत अधिक प्रतिबंधित है. उनके पास भूमि और अन्य उत्पादक संपत्तियों तक पहुंच बहुत ही सीमित है और संपत्ति के स्वामित्व मामले में तो यह स्थिति और भी खराब है. साथ ही किसानों को बाजार से जोड़ने में भी मदद की जाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उनकी उपज उपभोक्ताओं तक पहुंच जाए. एनजीओ का कहना है कि इस सहायता से महिलाओं की आय बढ़ाने में मदद मिली है. हेल्वेटास के जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण विशेषज्ञ आशीष बरुआ ने डीडब्ल्यू को बताया कि देश भर में उनके संगठन की परियोजना ने कम से कम 1,800 महिलाओं को सहायता प्रदान की है.
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