बुनकर कॉलोनी की पक्की सड़क जहां खत्म होती है, वहीं से तंग गलियों का जाल शुरू हो जाता है. ये गलियां अंदर ही अंदर होते हुए बुनकरों की अन्य कॉलोनियों तथा बड़े बाजार पहुंचती हैं. इन गलियों में हमारे आगे-आगे चल रहे हैं ज़ाकिर रहमान, जो हमें गलियों-मोहल्लों और बुनकरी के कारखानों की तमाम जानकारियां देते हुए चल रहे हैं. हमें तमाम लोग चबूतरों और सीढ़ियों पर बैठे दिखते हैं. कुछ बूढ़े -बुजुर्गों के गुट ठंड की इस ठिठुरन में आग तापते भी दिख जाते हैं.
"कोरोना महामारी के पहले भी हम बुनकर तमाम समस्याओं से जूझ ही रहे थे लेकिन लॉकडाउन ने तो कमर ही तोड़ दी. बाजार में मांग कम हो गई. सरकार द्वारा हमारी सुध नहीं ली गई तो बुनकरी के कारीगरों को अपना पारिवारिक और पुस्तैनी काम छोड़ कर बंबई और सूरत जाना पड़ा, ताकि कुछ पैसे जुटें और घर का खर्चा चल जाए."
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