फौरी मदद

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इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए फौरन कुछ करना जरूरी है। कोरोना की दूसरी लहर ने झकझोर दिया है। संक्रमितों और मरने वालों का आंकड़ा होश उड़ा रहा है।

इसने अर्थव्यवस्था के हालात और गंभीर कर डाले। छोटे-बड़े उद्योगों को भारी मदद की दरकार है। ऐसे में रास्ता यही रह जाता है कि केंद्रीय और व्यावसायिक बैंक मदद के दूत बनें। जैसा कि देखा जा रहा है, सबसे ज्यादा दबाव स्वास्थ्य क्षेत्र पर है। अस्पताल संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। आॅक्सीजन, दवाइयों, चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति बता रही है कि हालात को देखते हुए कुछ भी पर्याप्त नहीं है। ऐसे में जब तक कंपनियां उत्पादन नहीं बढ़ाएंगी, नई इकाइयां नहीं लगेंगी, तब तक चिकित्सा क्षेत्र को जरूरी सामान की आपूर्ति...

वर्तमान चुनौतियों से निपटने के साथ भविष्य की तैयारियों का भी है। गौरतलब है कि देश में टीकाकरण का काम जोरों पर है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में पर्याप्त मात्रा में टीके नहीं बन पाने से इस मुहिम को धक्का लगा है। इसका उपाय टीका उत्पादन बढ़ाना ही है। सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक जैसी कंपनियां तो सरकार से मदद भी ले चुकी हैं। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि छोटे और मझौले सभी उद्योग संकट में हैं। कामधंधा नहीं हो पाने की वजह से इकाइयां पिछले साल जैसी ही मुश्किलों में घिर गई हैं। महामारी से निपटने के लिए कई...

 

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