प्रियंका गांधी ने बदल दिया यूपी में चुनाव का मतलब-‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’

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Opinion | भारत में पहली बार चुनावी अभियानों का नारीकरण किया गया है, वो भी विकसित Kerala या तमिलनाडु में नहीं बल्कि सबसे पिछड़े राज्य UttarPradesh में | tarauk

फिर वो इकोफेमिनिस्ट चिपको आंदोलन हो, मथुरा बलात्कार विरोधी आंदोलन और डिग्निटी मार्च हो, ग्रामीण महिलाओं का शराब के खिलाफ सामूहिक विरोध करना हो, निर्भया के गैंगरेप के बाद सार्वजनिक प्रदर्शन हो, सीएए-एनआरसी, कृषि कानून - इन सब आंदोलन या प्रदर्शन के बाद देश की नीतियों में परिवर्तन आया है. क्योंकि जब भी महिलाएं सड़क पर उतरती हैं, तो वो चूकती नहीं हैं.इसके बावजूद राजनीतिक दलों ने महिलाओं को एक गुट के रूप में कभी संगठित नहीं किया.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का उत्तर प्रदेश चुनावी अभियान का नारा 'लड़की हूं! लड़ सकती हूं' - चुनाव अभियानों के सामान्य व्याकरण को फिर से लिखने का प्रयास है. यह वादा करके कि 2021 में चुनाव प्रचार शुरू होने पर कम से कम 40 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं होंगी और फिर उस बात कायम रहते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक बेंचमार्क सेट किया है और वह मायने रखता है.किसी भी चुनावी अभियान में पांच मुख्य किरदार होते हैं, जिन्हें शामिल किया जाता है.

अधिकतर यही देखा गया है कि ये सभी किरदार पुरुष ही होते हैं. कभी कभार अभियान की प्रवर्तक महिला होती हैं, लेकिन फिर भी वो उन पुरुषों के आसपास घिरी होती हैं जो कर्ताधर्ता हैं. वैसे ही अभियान के लीडर की बात करें तो कभी महिलाएं वो किरदार निभा रही होती हैं, लेकिन वहां भी पुरुष भरे पड़े रहते हैं. लेकिन अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चुनावी अभियान पुरुष-प्रधान न होकर महिला प्रधान बनने के प्रयास में है.

 

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