प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर है. लोकसभा में सोमवार को विपक्ष के सांसद कोर्ट की टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार पर हमलावर दिखे और सरकार से इस मसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग की.
इस बीच, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संसद में बयान दिया. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता थावरचंद गहलोत ने लोकसभा में साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जिस केस को लेकर फैसला दिया है, उसमें केंद्र सरकार पार्टी नहीं थी. उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा नौकरी में प्रमोशन को मूलभूत अधिकार नहीं बताने के फैसले पर सरकार उच्च स्तरीय चर्चा कर रही है.
एनडीए की सहयोगी एलजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया है. एलजेपी नेता चिराग पासवान ने लोकसभा में कहा कि वह इस फैसले से सहमत नहीं हैं. चिराग पासवान ने कहा कि महात्मा गांधी और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के बीच पूना पैक्ट का ही परिणाम है कि आरक्षण एक संवैधानिक अधिकार है. आरक्षण खैरात नहीं है, यह संवैधानिक अधिकार है. उनकी लोक जनशक्ति पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है. केंद्र सरकार इस पर हस्तक्षेप करे.
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण का दावा करना मौलिक अधिकार नहीं है. लिहाजा कोई भी अदालत राज्य सरकारों को एससी और एसटी वर्ग के लोगों को आरक्षण देने का निर्देश नहीं जारी कर सकती है. आरक्षण देने का यह अधिकार और दायित्व पूरी तरह से राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर है कि उन्हें नियुक्ति या पदोन्नति में आरक्षण देना है या नहीं. हालांकि, राज्य सरकारें इस प्रावधान को अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं.
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने उत्तराखंड सरकार के लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नति में एससी और एसटी को आरक्षण से संबंधित मामलों को एक साथ निपटाते हुए यह निर्देश दिया है. बेंच ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए ये व्यवस्था दी है. 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि ओबीसी के लिए तय क्रीमी लेयर का कॉन्सेप्ट एससी/एसटी के लिए भी नियुक्ति और तरक्की यानी प्रमोशन में लागू होगा.
आरक्षण एक बैसाखी है । कब तक लोगों को लंगड़ा बनाए रखोगे ? कभी तो उन्हे अपने आप चलने दो ।
घोडे की चाल ,गद्हे की चाल के बराबर करने के लिए गद्हे कोआरक्षण की घंटी पहनना जरुरी है। तब घोडा़ बराबर गदहा होगा। गद्हा ३०प्रतिशत कम शिक्षा बराबर घोडा़ यह गणित है किसी पर कांमेन्ट नही।यहां प्राकृतिक रुप से दोनो के चाल मे अंतर पाया जाता है।जबकी दोनो प्राकृतिक प्राणी है।
AAP ne EC se kya kaha? Must watch
सुप्रीम कोर्ट को सरकार से सहमति लेने के बाद ही निर्णय देना चाहिए क्योंकि असहमत होने पर संसद में हंगामा होता हैं ,ऐसे में कोर्ट के आदेश का अपमान होता है, तो इनकी आवश्यकता क्यों है?
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