नदियों की वापसी का रास्ता और महिलाओं की भागीदारी

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नदियों की वापसी का रास्ता और महिलाओं की भागीदारी Rivers RiversinIndia Anilprakashjoshi

की बात, वह सीधे महिलाओं की भागीदारी से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड में हैस्को शुक्लापुर की आसन गंगा नदी या फिर तिलवाड़ा में मंदाकिनी की सहायक नदियां या जैराज अल्मोड़ा में रामगंगा की सहायक नदियां हों या चकराता के स्थानीय गाद-गदेरों व धारों की बात हो, यहां स्थानीय महिलाओं ने इनके पुनरूद्धार के लिए कमर कसी है। उन सूखी धारों में पानी की वापसी के लिए जो कवायद शुरू की गई है, वह अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रयोग है। आज इनके जलछिद्रों का प्रयोग पूरे देश में सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं ने अपनाया...

देश की 265 से ज्यादा नदियां या तो मरने को हैं या मरने के कगार पर हैं। घर-गांव की छोटी-मोटी नदियां, तो वैसे भी गायब हो चुकीं, जिनका बड़ी नदियों को बनाने में एक अहम योगदान होता है। छोटी-छोटी नदियों के मरने की खबर हमें विचलित न करती हो पर अब बारी बड़ी नदियों की है। देश की सारी बड़ी नदियां भी संकट आ चुकी हैं। हमें ध्यान रखना चाहिए कि नदी छोटी हो या बड़ी, कभी अकेली नहीं होती। इसके साथ बहुत कुछ जुड़ा होता है। जल, जंगल, जमीन से इसके सीधे रिश्ते हैं। किसी भी एक नदी का असर उसी जगह नहीं होता, जहां वह बहती...

इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नदी दिवस की विषयवस्तु महिलाओं के योगदान पर केंद्रित है और इसमें कहीं कोई अतिश्योक्ति नहीं है, क्योंकि अगर नदी से सीधा किसी का कोई रिश्ता जुड़ा है, तो वह शायद महिलाएं ही हैं। महिलाएं और नदी, दोनों एक ही व्यवहार के होती हैं, क्योंकि महिलाएं परिवार का केंद्र होती हैं, सबके सुख-दुख व पालन-पोषण की जिम्मेदारी सीधे उनकी होती है और यही अमूमन व्यवहार नदियों का भी होता है। नदियां न जाति देखती हैं, न वर्ण देखती हैं। वे सबके लिए समान भाव...

 

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