अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन और रफाल विमानों की पहली खेप भारत में पहुंचने की कोलाहल भरी खबरों के बीच बीते 29 जुलाई को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी.
हालांकि इस रिपोर्ट पर काम आगे नहीं बढ़ पाया और भारत सरकार ने जून 2017 में वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक अन्य समिति बनाई, जिसने 31 मई 2019 अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इसमें बातें तो काफी बड़ी-बड़ी की गई हैं, लेकिन इसे लागू करने की उचित रूपरेखा पेश नहीं की गई है और यह देश के हाशिये पर पड़े लोगों एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों, एससी/एसटी, ओबीसी जैसे वर्ग के लोगों को कोई खास राहत प्रदान नहीं करती है और न ही उनके समावेश की इसमें कोई कोशिश है.
दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी देश की शिक्षा नीति उसका भविष्य तय करती है. यह नीति इस चीज के लिए रास्ता तैयार करती है कि देश में गैर-बराबरी खत्म होगी या नहीं, हर किसी को समान अवसर मिलेंगे या नहीं, समाज से भेदभाव मिटेगा या नहीं, सभी वर्गों का समावेश होगा या नहीं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में सभी बच्चों के लिए स्कूल की पहुंच आसान बनाने पर जोर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि देश में स्कूल छोड़ने की दर में कमी लाई जानी चाहिए और ज्यादा से ज्यादा बच्चों का स्कूलों में नामांकन किया जाए.
फिलहाल यह कानून छह से 14 साल की उम्र वाले बच्चों पर लागू है. इसके तहत सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वे इस उम्र वाले बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करें. इसी कानून के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीट आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित किया गया है. यह योजना शिक्षाविदों की इस रिसर्च पर आधारित है कि एक बच्चे के दिमाग का 85 फीसदी विकास आठ साल की उम्र तक हो जाता है, इसलिए यदि आठ साल की उम्र तक बच्चे की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो उसकी नींव बहुत खराब हो जाती है और आगे चलकर तमाम कोशिशों का कोई खास फायदा नहीं होता है.
इसके अलावा बच्चों को ‘21वीं सदी के कौशल’ से लैस करने पर ध्यान दिया गया है. इसके लिए कक्षा 6 से कोडिंग जैसे नए विषयों की शुरुआत की जाएगी. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है टीचरों की नियुक्ति. भारतीय स्कूल प्रणाली ने लंबे समय से अपर्याप्त शिक्षकों और प्रशिक्षित शिक्षकों की कम भर्ती की समस्या का सामना किया है.
एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि इस नीति में भारतीय भाषाओं में पढ़ाने के महत्व को रेखांकित किया गया है. बच्चों को एक नहीं, कई भाषाएं सिखाने के लिए कहा गया है. इसमें तीन भाषा फॉर्मूला यानी कि हिंदी, अंग्रेजी और स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने को कहा गया है.
शिक्षा को कमजोर करना
बहुत अच्छी है लेकिन द वायर वालो तुम 😭😭रहो
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