दुनिया मेरे आगेः स्मृतियों में गांव

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गांव मुझे बहुत पसंद हैं। हालांकि वहां रहने की अपनी बड़ी समस्याएं भी हैं, लेकिन इसके बावजूद गांव मुझे आकर्षित करता है। अब तो हालात इतने खराब हैं कि गांव के लोग खुद भी वहां रहना नहीं चाहते। गांवों के सब पुराने काम लगभग खत्म हो चुके हैं, खासकर हाथ से किए जाने वाले काम। हालांकि सामाजिक दृष्टि से देखें तो समाज के अलग-अलग समूहों के पारंपरिक पेशे की अपनी समस्याएं थीं।

जनसत्ता Published on: October 12, 2019 12:56 AM ग्रामीण इलाकों में अशिक्षा और गरीबी आज भी भयानक स्तर तक कायम हैं। जब तक वहां के बच्चों को अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल जाती, तब तक वहां के जीवन में कोई बदलाव आएगा, ऐसा सोचना शायद महज खामखयाली है। अशिक्षा के कारण ही गांवों में आज भी अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियां जमी हुई हैं। घनश्याम कुमार देवांश

लेकिन इससे इतर देखें तो खेती से लेकर घर-बाहर के अनेक ऐसे काम हैं, जिन्हें अब मशीनों के जरिए किया जाता है। इससे वहां आजीविका और पेट पालने के साधन पहले से बहुत कम हो गए हैं। खेती के खर्चे इतने ज्यादा बढ़ गए हैं कि फसल तैयार होने पर आमतौर पर उसकी लागत का खर्चा भी नहीं निकल पाता। जो बैंक किसानों की मदद के नाम पर किसान क्रेडिट कार्ड और कर्ज की योजनाएं लेकर सामने आए थे, उन्होंने किसानों के जीवन को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सरकार की ओर से कर्ज और दूसरी सुविधाओं की घोषणा का जमीनी सच यह है कि...

हालत यह है कि जिले के सबसे बड़े अस्पताल भी दयनीय हालत में दिखाई देते हैं। शायद ही कहीं डॉक्टर ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करते दिखाई देते हैं। ऐसे में इलाज की क्या स्थिति होगी, यह अंदाजा ही लगाया जा सकता है। आमतौर पर देखा गया है कि डॉक्टरों के निजी क्लीनिकों और बाकी अस्पतालों में मरीजों के साथ बेहद संवेदनहीन तरीके से बर्ताव किया जाता है। अस्पतालों के दृश्य देख कर कई बार तो विश्वास नहीं होता कि यह आधुनिक युग का कोई अस्पताल...

 

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