दुनिया मेरे आगे: चित्र भाषा

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आदिम मानव पत्थरों पर चित्रों के माध्यम से अपने अंदर की भावनाएं और उद्गार प्रकट करते थे। दुनिया के किसी भी कोने में ऐसे चित्र गुफाओं में मिल जाते हैं।

हेमंत कुमार पारीक हमारे देश की अनगिनत गुफाओं में शैलचित्रों की भरमार है। अजंता की गुफाएं इसका जीता-जागता प्रमाण हैं। उस दौर में भूख मिटाने का जरिया जंगली जानवरों को मार कर हासिल किया गया मांस हुआ करते थे। इसलिए ज्यादातर शैलचित्रों में आखेट करता मनुष्य दिखता है। जानवरों के साथ पक्षियों का चित्रण भी मिलता है। अब हम सबको ज्ञात है कि कालक्रम में धीरे-धीरे आदि मानव ने आग जलाना सीखा.

! और फिर वह जरूरत के मुताबिक काम पूरा कर देता है। बचपन के दिनों में यह सब एक कल्पना भर थी। मगर अब यथार्थ में एक चिराग यानी मोबाइल हमारे हाथ में है जो आज हमारी ताकत बन चुका है। कुछ वर्ष पहले की दीपावली के दृश्य याद करें। बाजार की बड़ी-बड़ी दुकानें याद आती हैं। दीपावली के महीने भर पहले बाजार में ग्रीटिंग कार्ड की दुकानें सज जाया करती थीं। अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं भेजने के लिए प्रेरक और किफायती कार्डों के लिए हम इस दुकान से उस दुकान पर भटकते रहते थे। फिर डाकघरों के वे बड़े-बड़े डिब्बे याद आते हैं,...

 

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