दिल्ली की एक अदालत ने पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े एक मामले की जांच को लेकर बृहस्पतिवार को दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि जब इतिहास विभाजन के बाद से राष्ट्रीय राजधानी में सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों को देखेगा, तो उचित जांच करने में पुलिस की विफलता लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा देगी.
अदालत ने जांच को कठोर एवं निष्क्रिय करार दिया जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि एक कॉन्स्टेबल को गवाह के रूप में पेश किया गया. उन्होंने कहा कि इस मामले में ऐसा लगता है कि चश्मदीद गवाहों, वास्तविक आरोपियों और तकनीकी सबूतों का पता लगाने का प्रयास किए बिना ही केवल आरोपपत्र दाखिल करने से ही मामला सुलझा लिया गया.के मुताबिक, न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि जिस तरह की जांच की गई और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निगरानी की कमी ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि जांच एजेंसी ने केवल अदालत की आंखों पर पट्टी बांधने की कोशिश की और कुछ नहीं.
अदालत ने शाह आलम, राशिद सैफी और शादाब को भीड़ द्वारा हरप्रीत सिंह की दुकान में कथित तोड़फोड़, लूटपाट और आग लगाने के सभी आरोपों से बरी कर दिया. अदालत ने कहा, ‘शिकायत की उचित मात्रा में संवेदनशीलता और कौशल के साथ जांच करने की आवश्यकता थी, लेकिन यह गायब था.’ अदालत का मामले में अन्य अवलोकन यह था कि अभियुक्तों का प्राथमिकी में विशेष रूप से नाम नहीं था, उन्हें कोई विशिष्ट भूमिका नहीं सौंपी गई थी, कोई प्रत्यक्षदर्शी रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं था और कोई सीसीटीवी फुटेज या वीडियो क्लिप इस बात की पुष्टि नहीं कर सका कि वे उस समय घटनास्थनल पर मौजूद थे. दूर से भी यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि उन्होंने आपराधिक साजिश में भाग लिया था.
दिल्ली पुलिस को रिजाइन कर संघ ज्वाइन कर लेना चाहिए पगार टैक्स पेयर के पैसो से लेते है और काम गैर संवैधानिक संस्था के एजेंडे के लिए करते है।
common_man_01 सचमें पूरी बर्बादियोंकी भरपाई दिल्ली पुलिस से की जाए।
मनानिय कोर्ट ने भी तो कोई सख्त करवाई नहीं कर, समय की बर्बादी की।
बीजेपी आरएसएस खुली धमकी देकर दिल्ली दंगा किया पुलिस और दंगाई हज़ारों को मारा जलाया जिसका वीडियो प्रमाण भी है लेकिन सजा देने के बजाय सरकार पुलिस दंगाई को कड़ी फटकार लगाकर दोबारा दंगा हिंसा की छूट दिया जा रहा है
Bilkul Sahi
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