साल 2020 के दिल्ली दंगों को लेकर द वायर की श्रृंखला के पहले हिस्से में जानिए उन हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं को, जिन्होंने नफ़रत फ़ैलाने, भीड़ जुटाने और फिर हिंसा भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.: उस बात को एक साल बीत गया है जब दिल्ली में 53 लोगों को क्रूरता से मार दिया गया था, सैकड़ों घरों और दुकानों को तोड़ दिया गया था और सार्वजनिक संपत्ति को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंक दिया गया.
मगर एड़ी-चोटी का जोर लगा देने के बावजूद दिल्ली पुलिस कथित मुख्य साज़िशकर्ताओं के तौर पर गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं- उमर खालिद, नताशा नरवाल, इशरत जहां, सफूरा जरगर, देवांगना कलीता, खालिद सैफी, मीरान हैदर, शिफा उर रहमान- का इस हिंसा से सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं जोड़ पाई है.ने पिछले कुछ महीने वह काम करते हुए बिताए हैं, जो शायद दिल्ली पुलिस ने नहीं किया या करना जरूरी नहीं समझा.
द वायर की ‘क्रोनोलॉजी’ इस हिंसा के पीछे छिपी असली साज़िश को बिल्कुल साफ कर देती है. जिन चेहरों और किरदारों को हम आज दिखाएंगे, इन्हें जानबूझकर दिल्ली पुलिस द्वारा जांच से बचाकर रखा गया, यहां तक कि इनका जिक्र भी नहीं हुआ. पर अब वो खामोशी टूटेगी.फरवरी 2020 के आखिरी हफ्ते में दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा से झुलस गई थी. 1984 के सिख दंगों के बाद पहली बार राजधानी में ऐसी हिंसा हुई. इस बार हिंसा का स्तर छोटा था और इस हिंसा में सबसे ज्यादा नुकसान मुसलमानों ने झेला.
पर क्या पुलिस की जांच सही दिशा में जा रही है? या फिर पुलिस सामने दिख रहे असली षड्यंत्र को छोड़कर एक कपोल-कल्पना का पीछा कर रही है? सांप्रदायिक हिंसा के पहले के हफ्तों में इनका साफ संदेश यह था कि सरकार के हिंदुत्व के एजेंडा का विरोध करने के लिए प्रदर्शनकारियों को एक बड़ी कीमत चुकानी होगी. ‘अगर 16 तक किसानों का प्रदर्शन खत्म नहीं होता है तो 17 को एक और जाफराबाद होगा और रागिनी तिवारी खुद सड़कें खाली कराएंगी. जो भी होगा वो केंद्र सरकार, राज्य सरकार और पुलिस की जिम्मेदारी होगी.’
लड़ने को तो ये लड़ाई अकेला ही लड़ रहा हूं लेकिन आज जो लड़ाई है, आज जो धर्मयुद्ध है उसमें मुझे आपका साथ चाहिए साथियों. सारी दिल्ली को शाहीन बाग बनाया जा रहा है साथियों. दीपक सिंह हिंदू लोगों से मौजपुर चौक पर दोपहर ढाई बजे इकट्ठा होने के लिए कहते हैं. दोपहर 2:30 बजे ही क्यों? क्या उन्हें पता था कि कपिल मिश्रा भी उसी समय वहां आने की योजना बना रहे थे?
लेकिन 23 जनवरी 2020 को, मेट्रो स्टेशन पर किसी भी तरह के प्रदर्शन से एक महीने पहले दीपक सिंह हिंदू ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों कोमैं वो हूं जो शाहीन बाग भी जाता है, जेएनयू भी जाता है, जामिया भी जाता है और तुम्हारी हज़ारों की भीड़ में अकेला दहाड़कर आता है. अगर तू देशभक्त होता तो तू देश का बंटवारा मज़हब के आधार पर न होने देता. तुम इस देश का बंटवारा नहीं होने देते. तुम देशभक्त नहीं हो सुअरों. तुम केवल गद्दार गद्दार गद्दार हो और गद्दारों को केवल जूते मारे जाते हैं.
Delhi police home ministry m aati h ?
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