हुआ है उसने कई सवाल खड़े किए हैं। भारत के लिहाज से कतर में हुए इस समझौते में कुछ भी नहीं है। शांति समझौता अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जालमे खलीलजाद और तालिबान के कमांडर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के बीच हुआ है। समझौते के वक्त अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर भी मौजूद रहे। इसमें तालिबान की तरफ से जो बयान दिए गए वह भारत के लिए चिंताजनक हैं।भारत ने कहा, हम अफगानिस्तान के साथ
इस समझौते पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में शांति और सुलह की हर प्रक्रिया में सहभागी है। भारत ने अफगान नेतृत्व को संदेश पहुंचाया कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिए बाहर से प्रायोजित आतंकवाद के खात्मे की जरूरत है। भारत ने अफगानिस्तान से यह भी कहा है कि वह अफगान नेतृत्व और अफगान नियंत्रण वाली स्थायी एवं समावेशी शांति तथा मेल-मिलाप का समर्थन करता है।तालिबान के प्रतिनिधि अब्दुल बरादर ने समझौते में मदद के लिए पाकिस्तान का नाम तो लिया, लेकिन भारत का कोई जिक्र नहीं था।...
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कतर में हो रहे समझौते के लिए वहां भारत के राजदूत पी कुमारन को मौजूद रहने को कहा। साथ ही विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला को काबुल जाने का फरमान जारी किया गया, जिस समय दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर दस्तखत हो रहे थे श्रृंगला काबुल में अफगान सरकार के साथ भारतीय हितों की बात कर रहे थे।
शांति समझौते पर दस्तखत से पहले पॉम्पियो ने कहा कि अगर अफगानिस्तान के सभी पक्षों ने इस पर अमल नहीं किया तो यह रद्दी का ढेर बनकर रह जाएगा। इसके बाद तालिबान प्रतिनिधि अब्दुल्ला बरादर ने अपने संबोधन में जिस तरह की भाषा का जिक्र किया वह 90 के दशक के तालिबान एप्रोच से बिल्कुल भी अलग नहीं था। बरादर ने कहा कि इस्लामी मूल्यों की रक्षा के लिए अफगानिस्तान में सभी को एकजुट हो जाना चाहिए। वह बार-बार कट्टर इस्लामी व्यवस्था की बात कर रहे थे।अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत अरबों रुपए खर्च कर चुका है। इस वक्त...
घोषणा में कहा गया कि शनिवार को हस्ताक्षर होने के 135 दिन के भीतर आरंभिक तौर पर अमेरिका और इसके सहयोगी अपने 8,600 सैनिकों को वापस बुला लेंगे। इसमें कहा गया कि इसके बाद ये देश 14 महीने के भीतर अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लेंगे।
अफगानिस्तान से हटा सकेगा, जो राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को दुबारा राष्ट्रपति बनने में मदद करेगा।
तो शरिया कानून लागू करेगा दूसरे वह महिलाओ और बच्चो पर अत्याचार भी करेगा,विकास कार्यो को निरस्त कर देगा,अफगानिस्तान को हज़ारो वर्ष पीछे ले जाएगा ,पाकिस्तान से घनिष्ठ दोस्ती बनाएगा ,भारत से दुश्मनी निभाएगा,इस समझोते से सिर्फ अमरीका को ही फायदा होगा, जिससे वह अपने सैनिको को
मेरे विचार में तालिबान और अमेरिका के बीच का शांति समझौता नाकामयाब /असफल ही रहेगा, क्योकि अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार और तालिबानी आतंकवादी संगठन के बीच सत्ता में कोई शांति समझोता होना लगभग असंभव / नामुमकिन ही है,तालिबानी आतंकीसंगठन कट्टरपंथि ,चरमपंथी मुस्लिमो का संगठन है जो, एक
मोदी की बात नहीं मानी क्या उसके दोस्त ने? 😂😂😂😂😂
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