ऐसा नहीं है कि महिला की कोई संतान नहीं है। करुप्पेयी की एक बेटी है, लेकिन वह कभी भी अपनी मां से मिलने नहीं आई। महिला ने शौचालय के अंदर ही अपना ठिकाना बनाया हुआ है। यहीं कुछ दो-चार बर्तन और एक छोटे से मिट्टी के चूल्हे के साथ उसकी जिंदगी कट रही है। शौचालय की सफाई के एवज में उपयोगकर्ताओं से मामूली शुल्क लेती है और उसी के सहारे जिंदगी काट रही है।
महिला ने बताया कि उसने वरिष्ठ नागरिक पेंशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन नहीं मिला। इसके लिए उसने जिला कलेक्टर कार्यालय में कई अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। उसके पास आजीविका के लिए आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है, इसलिए वह यहां इस सार्वजनिक शौचालय में जिंदगी गुजार रही है। तमिलनाडु में 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला, वृद्धा पेंशन के लिए अधिकारियों के आगे गुहार लगाती रहीं, लेकिन अधिकारियों ने उनकी नहीं सुनी। महिला के पास पेट पालने का और कोई साधन नहीं था, तो उसने सार्वजनिक शौचालय को ही अपना ठिकाना बना लिया। यह वाकया, तमिलनाडु के मदुरई जिले का है। अपनी आजीविका चला रही है। शौचालय की सफाई के बदले उसे हर रोज औसतन महज 70 से 80 रुपए मिल पा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि महिला की कोई संतान नहीं है। करुप्पेयी की एक बेटी है, लेकिन वह कभी भी अपनी मां से मिलने नहीं आई। महिला ने शौचालय के अंदर ही अपना ठिकाना बनाया हुआ है। यहीं कुछ दो-चार बर्तन और एक छोटे से मिट्टी के चूल्हे के साथ उसकी जिंदगी कट रही है। शौचालय की सफाई के एवज में उपयोगकर्ताओं से मामूली शुल्क लेती है और उसी के सहारे जिंदगी काट रही है।
महिला ने बताया कि उसने वरिष्ठ नागरिक पेंशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन नहीं मिला। इसके लिए उसने जिला कलेक्टर कार्यालय में कई अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। उसके पास आजीविका के लिए आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है, इसलिए वह यहां इस सार्वजनिक शौचालय में जिंदगी गुजार रही है।
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