डाॅ. अनिल प्रकाश जोशी का कॉलम: बिगड़ते पर्यावरण का दंश अब गांव ज्यादा झेलेंगे, पारिस्थितिकीय असमानताओं के नुकसान

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डाॅ. अनिल प्रकाश जोशी का कॉलम: बिगड़ते पर्यावरण का दंश अब गांव ज्यादा झेलेंगे, पारिस्थितिकीय असमानताओं के नुकसान opinion AnilPrakashJoshi Environment

डाॅ. अनिल प्रकाश जोशी का कॉलम:कॉपी लिंकबिगड़ते पर्यावरण का दंश अब गांव ही झेलेंगे। एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट बताती है कि आने वाले समय में पारिस्थितिकी व जलवायु परिवर्तन का देश-दुनिया के गांवों पर सीधा असर पड़ेगा। विडंबना है कि पहले गांव आर्थिक रूप से असमानता झेलते थे, अब वे पारिस्थितिकीय असमानताओं के दुष्परिणाम ज्यादा झेलेंगे।

बात साफ है, जहां गांव खाली होंगे वहां शहरों की भीड़ दो बड़े काम तो करेगी ही। एक तरफ जहां बढ़ती शहरी जीडीपी का दम भर जाएगा, दूसरी तरफ पारिस्थितिकीय तंत्र को उतना ही बदतर भी बनाएगी। इसे अन्य दृष्टि से भी देखें। गांव, देश-दुनिया के जंगल हवा, मिट्टी, पानी में एक बहुत बड़ा योगदान देते हैं, घटती ग्रामीण आबादी उन पर विपरीत प्रभाव डालेगी।

अपने देश में ही 68% लोग गांव में रहते है और 32% शहरों में, लेकिन आने वाले समय में ये समीकरण बदलने वाले हैं। अब कैसे मान लिया जाए कि हम अपने देश और दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र को इन हालातों में बेहतर कर पाएंगे। क्योंकि दुनिया में ऊर्जा की बड़ी खपत करीब 78% शहरों के ही कारण है और यही शहर दुनिया में 70% कार्बन उत्सर्जन का भी बड़ा कारण हैं।

दिल्ली प्रदूषण का अड्डा है तो हिमाचल आर्थिकी व पारिस्थितिकी का मॉडल है। केरल भी ग्रीन इकोनॉमी का अच्छा उदाहरण है। मतलब साफ है कि अगर जल्दी इस तरह के निर्णय नहीं लिए गए, जहां गांव की आर्थिकी को बेहतर किया जाए तो पारिस्थितिकी दंड झेलने पड़ेंगे, जिससे आने वाले समय में मुसीबतें कई गुना बढ़ जाएंगी।

 

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