देशभर में रेप की बढ़ती घटनाओं के बीच बलात्कार और हत्या के दोषियों को मृत्युदंड देने की मांग भी तेज हो रही है. वहीं निर्भया गैंगरेप मामले के दोषियों के खिलाफ जल्द डेथ वारंट जारी करने की याचिका पर सुनवाई टल गई है, जबकि सात साल बाद भी गुनाहगारों को सजा नहीं मिलने से पीड़िता के परिजन दुखी हैं. निर्भया के एक गुनहगार अक्षय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है जबकि निर्भया की मां ने भी दोषियों को जल्द फांसी के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.
बहरहाल, आंकड़े बता रहे हैं कि आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पिछले 19 साल में ट्रायल कोर्ट ने 2018 में सबसे अधिक मौत की सजा सुनाई है. पिछले तीन साल के इन आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि 30 जुलाई 2015 को आखिरी फांसी याकूब मेनन को दी गई थी. प्रोजेक्ट 39 ए, डेथ पेनल्टी रिपोर्ट 2018 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मौत की एक सजा सुनाई थी जबकि 7 लोगों की मौत की सजा को दूसरी सजा में तब्दील कर दिया गया था, वहीं तीन को बरी कर दिया. आंकड़ों के अनुसार 2017 में 7 लोगों को मृत्युदंड दिया गया था और एक की मौत की सजा को दूसरी सजा में बदल दिया गया था. वहीं 2018 में सुप्रीम कोर्ट में 3 लोगों की मौत सजा पर मुहर लगाई गई जबकि 11 की सजा को दूसरी सजा में तब्दील कर दिया गया.
रिपोर्ट बताती है कि मौत की सजा के मामले में लोगों को हाई कोर्ट से राहत मिलनी शुरू होती है. प्रोजेक्ट 39 ए की रिपोर्ट के मुताबिक हाई कोर्ट में 2016 में 15 लोगों को मौत की सजा पर मुहर लगी थी, 56 लोगों को मिली मौत की सजा को दूसरी सजा में तब्दील कर दिया गया जबकि 23 को बरी और 11 मामलों को फिर ट्रायल कोर्ट भेज दिया गया. जबकि 2016 में ट्रायल कोर्ट ने 150 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी.
डेथ पेनल्टी रिपोर्ट के मुताबिक हाई कोर्ट ने 2017 में 11 लोगों को मिली मौत की सजा पर मुहर लगाई जबकि 54 के मृत्युदंड को दूसरी सजा में बदल दिया. 35 को बरी कर दिया गया और 10 मामलों को फिर ट्रायल कोर्ट भेज दिया गया. इसी तरह 2018 में हाई कोर्ट ने 23 लोगों को मिली मौत की सजा पर मुहर लगाई थी. 58 की सजा को बदल दिया गया था जबकि 20 को बरी कर दिया गया था और 10 मामलों को फिर ट्रायल कोर्ट भेज दिया गया था.
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