जीना-डरना: डर का सामना

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डर एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। हर इंसान को किसी न किसी का डर सताता ही है। चाहे वह बीमारी का डर हो, बूढ़े होने का या मृत्यु का डर हो, किसी प्रियजन को खोने का या कुछ बनने बिगड़ने का डर हो।

नरपत दान चारण लेकिन ऐसे डर अक्सर निराधार होते है। जिनका कोई पुख्ता कारण नहीं होता। ऐसे डर कुछ कमजोर जरूर करते है, लेकिन डर से डर कर नकारात्मक विचार धारण करना ठीक नहीं है। डर हमें एक सीमा में रखकर संतुलित रखने का काम भी करता है। वहीं डर की पराकाष्ठा साहस को पैदा करती है। जरूरी यह है कि डर से डरकर भागना नहीं बल्कि वजह जानकर सामना करना चाहिए। महान विद्वान एलेनोर रूजवेल्ट का एक प्रसिद्ध उद्धरण है कि - हर उस अनुभव से आपको शक्ति, साहस और आत्मविश्वास मिलता है, जहां आप रुक कर डर का सामना करते हैं, उससे...

जब तक की वह डर को अपने पैरों तले नहीं कुचल देता। विद्वानों के इन कथनों से और व्यावहारिक रूप से यह सच सामने आता है कि ज्यादातर डर निराधार और खोखले होते हैं। हम अपने जीवन में जिन चीजों से डरते हैं, उनमें से अधिकतर कभी हुई ही नहीं होती, सिर्फ कुछ चीजें ही सचमुच हुई होती है और हम उससे डर जाते हैं। अब अगर जब आप उस डर के सामने खड़े होकर, अपने आप को संभालते हैं और थोड़ा संकल्प और साहस रखते हैं, तो आप उससे उबर जाते हैं। यानी संकल्प-साहस के बल पर सारे डर को नियंत्रित किया जा सकता है। किसी भी डर को दूर...

 

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