वर्तमान राजनीति में श्रीराम, हनुमान, कृष्ण-अर्जुन संवाद, गंगा अवतरण जैसे उद्धरणों को भले ही सीधे तौर पर हिंदुत्व से जोड़ा जाता हो, लेकिन संविधान निर्माताओं ने इसे भारत की सभ्यता और संस्कृति माना था। संविधान की मूल प्रति के हर अध्याय में ऐसे कई प्रसंगों के चित्र को जोड़ते हुए उन्होंने शायद मंशा तभी साफ कर दी थी कि राम और कृष्ण किसी धर्म के नहीं देश की गरिमा और संस्कृति के प्रतीक व धरोहर हैं। ठीक उसी तरह जैसे महात्मा गांधी किसी पार्टी के नहीं बल्कि देश के पथप्रदर्शक...
गुरुवार को संविधान दिवस पर केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संविधान को बखूबी समझा दिया। एक के एक उन्होंने मूल प्रति के कुछ पन्नों को ट्वीट किया जिससे मर्यादा, समरसता, वीरता, अहिंसा, धर्म और सदभाव जैसे कई भाव दिखते हैं। मसलन नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को वर्णित करने वाले खंड के साथ श्रीराम द्वारा लंका विजय और सीता को वापस लाने का चित्र जुड़ा है। जबकि नागरिकता वाले अध्याय में वैदिक सभ्यता के गुरुकुल का दृश्य है। संविधान के चौदहवें अध्याय जिसमें नीति निर्देशक तत्वों को बारे में बताया गया...
रविशंकर ने संविधान के पन्नों को नए तरीके से सामने रखते हुए बहुत बारीकी से यह भी समझा दिया है कि भारतीय संस्कृति को चश्मे से न देखा जाए। ध्यान रहे कि पिछले दिनों राम मंदिर को लेकर चलने वाली बहस में भी यह समझाने की कोशिश हुई थी कि राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक हैं।
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