सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जजों की नियुक्ति जल्द से जल्द करने को कहा है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को कहा कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में तेजी लाए, इस प्रक्रिया के लिए 6 महीने बहुत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'जजों की नियुक्ति में देरी से न्यायपालिका पर बोझ बढ़ता है.'
सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी ओडिशा में वकीलों की हड़ताल को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान की. सुप्रीम कोर्ट ने सेक्रेटरी जरनल को इस मामले में केंद्र सरकार से सीधे बात करने को कहा. AG के के वेणुगोपाल ने कोर्ट को भरोसा दिया कि इस संबंध में वो कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद से बात करेंगे. आपको बता दें कि देश के कई उच्च न्यायालयों में जजों के कई पद खाली पड़े हैं. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में भी मुकदमों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या में इजाफा किया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस समेत जजों की संख्या 34 तक पहुंच गई है. हाल ही में जस्टिस रामसुब्रमण्यन, जस्टिसकृष्ण मुरारी, जस्टिस आर रविन्द्र भट्ट और जस्टिस हृषिकेश रॉय की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त की थी.
भारतीय न्यायपालिका के जजो की कार्यशैली भारतीयो पर बौझ डाल रहो ''' न्यायपालिका की कायशैली के कारण ही लाखो लोग भूखमरी की कगार पर आ जाते
जजों की नियुक्ति की पारदर्शी प्रक्रिया क्यों नहीं बनाई जाती...भाई भतीजा वाद पर लगाम क्यों नहीं ?
MrGupta94369830 जजों को सेलरी ना देकर सिर्फ प्रति मुकद्दमा फैसला देने का भत्ता दिया जाए फिर देखना कार्यवाही की स्पीड, तारीख पे तारीख खत्म .......😂😂
MrGupta94369830 पुलिस के जवानों के खाली पदों को देरी से भरने पर मौजूदा जवानों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है
If Cases are disposed abnormally delayed, litigants per jyada boz padta hai.
चलते है एक आध घंटे कोर्ट में टाइम पास के बाद। इनके बाद कहां जाते है सब को पता। मुकदमों के ढेर के लिए जजों की संख्या से ज्यादा उनका काम करने का ढीला ढाला रवैया जिम्मेदार है। 30 से 40 प्रतिशत समय बिगड़ते है। सबसे बड़ी बाट। स्कूल के बाद कोर्ट में सबसे ज्यादा छुट्टी।
मुख्य न्यायाधीश को चाहिए के वे भेष बदलकर एक महीने तक देश के कोने कोने जाकर जजों के काम के तरीके देखे सब समाज आएगा। ये टाइम पे आते नहीं, आकर कुर्सी पे बैठे नहीं के घड़ी और कैलेंडर पर नजर। दिलने कहा तो पहले एक दो की जिरह 5-7 मिनट की बाद के केसों पे तारीख पे तारीख। बाद में निकल
कोलोसियम सिस्टम तो संविधान के विरूद्ध है उस पर क्या,,,,
जजों की ज्यादा छुट्टियां भी बोझ का कारण हैं
चोर बैठे पडे है हमारे न्यायपालीका मे
कानून सबूत मांगता है तो फिर बिना सबूत के 498a 125 323 504 506 और ना जाने कितने धारा क्यों लगा देता है अब कानून को क्या कहें चूतिया या जाहिल
₹1 लाख से ज्यादा की तनख्वाह पाने वाला जज 5 से 10 सालों में भी यह नहीं जान पाता मुकदमा झूठा है या सच्चा !
देश में उन अदालतों में न्याय होता है। जहाँ तारीख पे 'तारीख'लगाने का 100-500₹ में हर रोज धन्धा होता है।कोई रोक-टोक नहीं। लोकतंत्र और मानवधिकार अदालतों के ठेंगे पर रखा है।
जो जज पूरी नौकरी में अपने सामने बैठे रीडर और मुंशी को रिश्वत लेने से नहीं रोक पाता, उससे आप देश सुधारने की उम्मीद करे बैठे हों !! आपको लगता हैं न्याय सही मिल पायेगा महोदय जी से ......
आर. टी. आई. से पता चला है कि पिछले 10 वर्षों में बड़ी संख्या में भ्रष्ट जजों के खिलाफ शिकायतें मिली हैं लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि एक भी आरोपी जज के खिलाफ कार्रवाई तो दूर की बात है, कारवाई करने हेतु अनुमति तक नहीं दी गई है. यह है हमारे देश का स्वच्छ, सबल और पारदर्शी न्याय
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