जम्मू-कश्मीर: गुलाम नबी के समर्थकों की कठुआ में रैली के क्या हैं सियासी मायने, क्या सीएम चेहरा बनना चाहते हैं आजाद

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जम्मू-कश्मीर: गुलाम नबी के समर्थकों की कठुआ में रैली के क्या हैं सियासी मायने, क्या सीएम चेहरा बनना चाहते हैं आजाद Gulabnabiazad JammuKashmir Congress

हमारे बुरे दिन हैं, इसलिए जब देखो तब कोई न कोई बड़ा नेता बगावती तेवर लिए चला आ रहा है। लगता है आजाद साहेब भी उस सिलसिले को और आगे बढ़ा रहे हैं।'बुधवार शाम को कई पूर्व मंत्री और विधायकों के इस्तीफे के बाद गुरुवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के समर्थकों ने एक रैली की। यह रैली ऐसे वक्त में हुई जब माना जा रहा है कि इस्तीफा देने वाले नेता कथित तौर पर उनके ही गुट के हैं। इन इस्तीफों की वजह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर और गुलाम नबी आजाद के बीच विचारों की टकराहट को माना जा...

पार्टी सूत्रों का कहना है कि आजाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनना चाहते हैं इसलिए पार्टी आलकमान पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत ही पहले उनके गुट के लोगों ने इस्तीफा दिया और उसके बाद उनके समर्थकों ने यह रैली की। हालांकि जम्मू-कश्मीर में अभी तक विधानसभा चुनाव की घोषणा नहीं हुई है।

पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा 'जम्मू-कश्मीर में अभी परिसीमीन की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हुई है। ऐसे में सीएम उम्मीदवार घोषित करने की बात उठाना तर्कसंगत नहीं है। मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस पर फैसला विधायक और आलाकमान मिलकर लेती है। पार्टी ने उन्हें अब तक बहुत कुछ दिया है इसलिए उन्हें धैर्य रखना चाहिए'।

2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद से कांग्रेस नेतृत्व का विरोध करने वालों में आजाद सबसे प्रमुख नेताओं में है। उन्होंने 1973 में कांग्रेस कमेटी के ब्लॉक सचिव के रूप में राजनीति में अपना करियर शुरू किया था। 1990 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए। 2005 में आजाद को जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया था। बताया जाता है कि 2005 में जम्मू-कश्मीर के सीएम बनने से पहले, आजाद को तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव ने क्रमशः 1986 और 1995-96 में...

 

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