शिलाॅन्ग, [इन्द्रप्रीत सिंह]। शिलाॅन्ग के पंजाबी लेन में रह रहे 300 सिख परिवारों पर उजड़ने का खतरा मंडरा रहा है। उनकी पीडा़ है कि यहां 156 साल से पीढ़ी दर पीढ़ी से रह रहे हैं, फिर भी बाहरी हैं। अब सवाल उठता है कि जाएं तो कहा जाएं। अपनी मातृभूमि से दूर शिलॉन्ग में गए गुरजीत सिंह के पुरखों को शायद यह नहीं सोचा होगा कि जिन लोगों की सेवा के लिए उन्होंने अपनी जन्मभूमि छोड़ी, उन्हें बरसों बाद यहां से खदेड़ने के आदेश जारी कर दिए जाएंगे। वह भी सिर्फ इसलिए कि उनकी दो एकड़ जमीन अब सोना उगलने लगी है। यह...
दैनिक जागरण ने शिलॉन्ग जाकर इनकी व्यथा को समझना चाहा, तो पता चला कि 300 सिख परिवारों के करीब 2500 लोग यहां रह रहे हैं। यहां की स्थानीय जनजाति खासी समुदाय के लोग इन्हें यहां से हटाना चाहते हैं। पिछले साल मई में खासी और पंजाबी समुदाय के लोगों में झगड़ा भी हुआ था। गुरुद्वारा साहिब को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। जागरण की टीम यहां पहुंची तो जहां से पंजाबी लेन शुरू होती है, वहां अर्द्ध सैनिक बल के जवान तैनात हैं। पंजाबी समुदाय के लोगों की सभी दुकानें बंद...
स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव गुरजीत सिंह ने बताया कि 1972 के मेघालय भूमि एक्ट के अनुसार कोई भी बाहरी व्यक्ति यहां पर जमीन खरीद नहीं सकता। मुझे समझ नहीं आता कि क्या 150 साल बाद भी हम बाहरी हैं। उन्होंने बताया कि हमसे रिलोकेशन की बात कर रहे हैं, लेकिन कर नहीं रहे हैं। कह रहे हैं, इस जमीन को छोडऩे के बदले आपको मिलेगा कुछ नहीं। कोई इनसे पूछने वाला हो कि हम जाएंगे कहां?यहां पर पंचायती सिस्टम उस तरह का नहीं है, जैसा पंजाब समेत देश के अन्य राज्यों में है। यहां पंचायत आपसी सहमति से चुनी...
मेघालय की राजधानी शिलाॅन्ग के पंजाबी लेन क्षेत्र में 156 साल से रह रहे सिखों को उजड़ने से बचाने के लिए पंजाब सरकार का शिष्टमंडल वीरवार को मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा से नहीं मिल पाया। वह दिल्ली में सर्वदलीय बैठक में व्यस्त थे। उनकी गैरमौजूदगी में पंजाब के सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा की अगुआई में गए शिष्टमंडल ने मेघालय के गृहमंत्री जेम्स के संगमा से मुलाकात की है। गृहमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार शिलाॅन्ग में रह रहे सिखों के अधिकारों की रक्षा करेगी। पंजाब सरकार...
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