कांगड़ा के बोह में कितने लोगों की जिंदा समाधि लग गई, किन्नौर की सांगला घाटी का मंजर कितना भयावह रहा। नियूगलसरी में कितने लोग वाहनों समेत जिंदा दफन हो गए। लाहुल में कुदरत ने कहर बरपाया और जीप समेत लोगों की नदी में जलसमाधि लगा दी। मंडी के करसोग में रेत की खान में आकर मजदूर मौत का शिकार हो गए। मंडी-कुल्लू मार्ग पर कितने ही वाहनों पर पत्थर गिरने से उनके चिथड़े उड़ गए।
हम प्रदेश में मैदानी क्षेत्रों की तरह चौड़ी सड़कों का सपना देख रहे हैं। चंडीगढ़-शिमला, चंडीगढ़-मनाली, पठानकोट-शिमला, पठानकोट-मंडी फोरलेन का काम चल रहा है। देश और दुनिया में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जहां पर पर्यावरण से कम से कम छेड़छाड़ करके संपर्क क्षेत्र को बढ़ाया गया है। इन दिनों कीरतपुर से मनाली तक फोरलेन का काम चल रहा है। सबसे खतरनाक व ज्यादा पहाड़ मंडी व पंडोह के बीच में हैं जहां पर भरी बरसात में भी धड़ल्ले से पहाड़ काटे जा रहे हैं। सैकड़ों वाहन कई-कई घंटे सड़क पर रुके हुए हैं, लोग भूखे-प्यासे सड़कों पर...
पहाड़ों के लिए बनाई गई कट एंड फिल की तकनीक कहीं नजर नहीं आती, सड़क के साथ पानी की निकासी पर कोई ध्यान नहीं, कहीं पर भी काटने का वैज्ञानिक आधार नजर नहीं आता। पहाड़ सुंदर हैं, यहां की नदियां, झीलें, जंगल, हिमाच्छादित चोटियां, लोकजीवन, संस्कृति जिन्हें देखने पर्यटक आते हैं, वह तो पूरे हिमाचल में हैं। इन्हें केवल फोरलेन जैसी सड़कों पर पर्यटकों को दौड़ा कर नहीं दिखाया जा सकता।
इसके लिए तो भीतरी द्वार खोलने पड़ेंगे। पर्यटकों को अंदरूनी इलाकों तक पहुंचाना होगा। हिमाचल केवल मनाली, शिमला या डलहौजी तक ही सीमित नहीं है। यहां पर असंख्य घाटियां ऐसी हैं जो मनाली, शिमला और डलहौजी से भी कहीं ज्यादा सुंदर हैं। इन स्थलों पर साफ-सुथरी पक्की व साल भर चलने वाली सड़कें हों, सभी जरूरी सुविधाएं हों तो मुख्य सड़कों पर दबाव कम होगा, ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा, और फिर ज्यादा चौड़ी सड़कों की जरूरत भी नहीं होगी। विकास के लिए सड़कों का जाल जरूरी है न कि सड़कों को चौड़ा करके प्रकृति को चुनौती...
भूस्खलन ने प्रदेश की 90 फीसद सड़कों को क्षतिग्रस्त कर दिया है। खुदाई से निकलने वाले मलबे की डंपिंग करने का कोई नुस्खा नहीं है, नदी नालों व जंगलों में इसे उड़ेला जा रहा है, जो पानी के साथ बहते हुई तबाही का आलम बन रहा है। मानसून के साथ आपदा आती है। इसे पहाड़ी विकास का अलग मॉडल बनाकर ही रोका जा सकता है। देवभूमि को हम वीरभूमि भी कहते हैं, खेल भूमि बनाने की भी बातें हो रही हैं मगर सबसे ज्यादा जरूरी है इसे पर्यटन भूमि बनाना और उससे भी ज्यादा जरूरी है यह सब पर्यावरण के अनुकूल...
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