चौपालः संतुलन का संकट

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यह किसी से छिपा नहीं है कि आज भी कई आंदोलन जैसे नर्मदा आंदोलन, गंगा बचाओ आदि गांधीवादी आंदोलन के जरिए लोग अपनी मांग को लेकर संघर्षरत हैं।

हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव आकलन 2020 पर एक मसौदा अधिसूचना जारी की। यह पर्यावरण प्रभाव आकलन 2006 का स्थान लेगा। दरअसल, 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद देश में एक मजबूत कानून की दरकार थी, जिससे पर्यावरण पर पड़ने वाले को दुष्प्रभाव का आकलन किया जा सके। इसके लिए वर्ष 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लाया गया, जिसके अंतर्गत 1994 में पर्यावरण प्रभाव आकलन आया। इसमें कई प्रावधान समाहित किए गए हैं, जिसके तहत प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल और पर्यावरण पर...

कंपनियां इससे लाभ कमा सकती हैं। इन परियोजनाओं से संबंधित रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करना भी अनिवार्य बना दिया गया है। इसके अलावा, देश की सीमाओं से सौ किलोमीटर के दायरे में आने वाले परियोजना की जन-सुनवाई नहीं होगी। इसका सबसे अधिक प्रभाव उत्तर-पूर्व के इलाकों में पड़ेगा, जहां जैव-विविधता के लिहाज से सबसे संवेदनशील जगहें हैं ऐसे ही कई प्रावधान हैं, जिससे पारिस्थितिकी संवेदी क्षेत्र की अनदेखी की गई है। अधिसूचना में तमाम पर्यावरण-वैज्ञानिक अनुभवों की उपेक्षा की गई है, जिससे आर्थिक निवेश के लिए सरकार...

 

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