गुरुवार की दोपहर जब आसमान में अचानक काले बादल छाए और बारिश होने लगी, तो चेन्नई के रेन मैन नन्हे बच्चे की तरह चहक उठे.डॉक्टर शेखर राघवन कहते हैं,"ज़ाहिर है, बारिश देख कर मैं खुश हूं. मैं 200 दिनों के बाद फिर से बारिश देख रहा हूं. बीते साल दिसंबर की पांच तारीख को ऐसी ही झमाझम बारिश हुई थी. वैसे तो दिसंबर महीने के आख़िरी दिन तक बारिश होती है लेकिन उत्तर पूर्वी मॉनसून फेल हो गई थी और दिसंबर पांच के बाद से ही बारिश बंद हो गई थी. बारिश अद्भुत है.
डॉक्टर राघवन दक्षिण भारत के इस शहर की पानी की समस्या से निपटने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानी बारिश के पानी का संग्रहण करने की वकालत की थी. इसी कारण उन्हें रेन मैन कहा जाने लगा.अन्य शहरों के उलट, चेन्नई दक्षिण पश्चिम मानसून के छाया क्षेत्र में आता है. यह पूरी तरह से उत्तर पूर्वी मानसून से होने वाली बारिश पर निर्भर है जो अक्टूबर से दिसंबर तक रहता है.
डॉक्टर राघवन कहते हैं,"विडंबना यह है कि भू-जल स्तर में कमी के कारण बोरवेलों में भी अब पानी नहीं है. लेकिन बोरवेल के मुक़ाबले खुले कुंओं में पानी उतना कम नहीं हुआ है. असल में सूखे की इस स्थिति में भी, खुले कुओं में 10 फीट तक पानी अभी भी है. और इनमें 18 से 20 फीट पर पानी है."बीबीसी के साथ डॉक्टर राघवन का साक्षात्कार इस मोड़ पर पहुंचा था जब एक युवा गृहिणी, सौम्या अर्जुन उनसे बात करने पहुंचीं. सौम्या का कहना था कि वो जल्द से जल्द डॉक्टर राघवन से बात करना चाहती हैं.
वो कहती हैं,"इसका मतलब है कि 69 परिवारों के लिए खर्च मात्र 3000 रूपये प्रति परिवार होगा. हम फिलहाल पानी के टैंकर से एक दिन के 24,000 लीटर पानी खरीदने के लिए जितना पैसा खर्च कर रहे हैं, ये उसका मात्र एक तिहाई होगा." वो कहते हैं"बीते पंद्रह दिनों से चेन्नई के विभिन्न इलाकों से उन्हें रोज़ाना करीब 10 लोग या तो मिलने आते हैं या फिर फ़ोन करते हैं. सभी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना चाहते हैं."आज की स्थिति करीब पच्चीस साल पहले की स्थिति से काफी अलग है. पहले भी डॉक्टर राघवन रेन वाटर हार्वेस्टिंग के बरे में प्रचार करते थे लेकिन उन्हें और उनकी बातों को नज़रअंदाज़ किया जाता था.
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