ख़बर सुनेंक्या अफगानिस्तान गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है? क्या अफगानिस्तान की राजनीति में अमेरिका की सुरक्षा और खुफिया एजेंसी सीआईए ने इंट्री ले ली है। खुफिया और सुरक्षा मामलों के जानकार वहां चल रहे दौर को इसी नजरिए से देख रहे हैं। तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम टलने को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। खुफिया और सुरक्षा एजेंसी के सूत्र कहते हैं कि इसके कुछ बड़े कारण थे। बताते हैं कि पड़ोसी देश में मौजूदा सरकार का गठन पावर शेयरिंग के आधार पर होना था, लेकिन आपसी तनातनी, गुटबाजी...
अफगानिस्तान मध्य एशिया का गेट-वे माना जाता है। इसके पड़ोसी देश ताजिकिस्तान समेत अन्य देशों की अलग-अलग परेशानियां हैं। इन देशों के बहुत से लोग अभी भी अफगानिस्तान में हैं। ऐसे में अफगानिस्तान के अंदरूनी हालात को समझने वालों का कहना है कि पावर शेयरिंग और ट्रेड रूट दोनों अलग-अलग मामले हैं। सभी झगड़ों का केंद्र यही दो हैं। इसे लेकर तालिबान के भीतर कई गुट बन गए हैं। कुछ बहुत कट्टरपंथी गुट हैं और कुछ उदारवादी भी। इसी तरह हक्कानी नेटवर्क में कई गुट हैं। हजारा की अलग समस्या है। बलोचों या पश्तों भाषा...
पाकिस्तान की जमीन से चलने वाले आतंकवाद पर काम कर चुके सूत्र का कहना है कि वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई की आतंकवाद को लेकर 'गोल शिफ्टिंग' काफी संवेदनशील मामला है। इसे अमेरिका जैसे देश भी समझते हैं। इसलिए सभी अपनी चिंता दूर करने की कोशिश कर रहे होंगे। खुफिया और सुरक्षा के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि दुनिया के देश मानते हैं कि आतंकवाद किसी के पक्ष में नहीं है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी इसके बाबत इस बार एक सुर में आवाज सुनाई दे सकती है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका...
अफगानिस्तान मध्य एशिया का गेट-वे माना जाता है। इसके पड़ोसी देश ताजिकिस्तान समेत अन्य देशों की अलग-अलग परेशानियां हैं। इन देशों के बहुत से लोग अभी भी अफगानिस्तान में हैं। ऐसे में अफगानिस्तान के अंदरूनी हालात को समझने वालों का कहना है कि पावर शेयरिंग और ट्रेड रूट दोनों अलग-अलग मामले हैं। सभी झगड़ों का केंद्र यही दो हैं। इसे लेकर तालिबान के भीतर कई गुट बन गए हैं। कुछ बहुत कट्टरपंथी गुट हैं और कुछ उदारवादी भी। इसी तरह हक्कानी नेटवर्क में कई गुट हैं। हजारा की अलग समस्या है। बलोचों या पश्तों भाषा...
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