गुजरात के वो मुख्यमंत्री जिन्हें छात्रों के गुस्से की वजह से गंवानी पड़ी कुर्सी

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गुजरात में कई विकास कार्यों की नींव रखने वाली चिमनभाई पटेल (Chiman Bhai Patel) को 1974 में छात्र आंदोलन की वजह से अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. | knowledge News in Hindi - हिंदी न्यूज़, समाचार, लेटेस्ट-ब्रेकिंग न्यूज़ इन हिंदी

साल 1973 में दिसंबर का महीना था. अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई इंजीनियरिंग कॉलेज की हॉस्टल मेस की फीस में एकाएक 20 प्रतिशत का इजाफा कर दिया गया. खाने की फीस बढ़ने वजह से छात्र आक्रोशित हो गए. फिर क्या था, छात्रों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके करीब 13 दिनों बाद गुजरात यूनिवर्सिटी में ऐसा ही एक प्रदर्शन शुरू हो गया. प्रदर्शन की वजह से पुलिस और छात्रों के बीच झड़प हुई और फिर 7 जनवरी को छात्र आमरण अनशन पर बैठ गए. ये आमरण अनशन गुजरात के कई शिक्षण संस्थानों में हो रही थी.

छात्रों का ये आंदोलन बड़ा रूप लेता चला गया. बाद में इसमें टीचर्स और वकील भी शामिल हो गए और नव निर्माण युवक समिति की स्थापना कर मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगना शुरू किया. आंदोलन की चपेट में पूरा गुजरात आ गया था. 25 जनवरी को पूरे गुजरात में पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़पें हुईं. स्थिति इतनी बिगड़ गई कि राज्य की स्थिति संभालने के सेना बुलानी पड़ी. हालत बेकाबू होते देख देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुख्यमंत्री से 9 फरवरी को इस्तीफा ले लिया. इन मुख्यमंत्री का नाम था चिमन भाई पटेल.

चिमनभाई दो बार मुख्यमंत्री बने और दोनों बार अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. चिमनभाई, पटेल थे. पटेलों का गुजरात की राजनीति में कितना वर्चस्व है, बताने की जरूरत नहीं है. 1973 में चिमनभाई गुजरात के मुख्यमंत्री थे. चिमनभाई के तेवर इतने तल्ख थे कि इंदिरा गांधी के सामने मुख्यमंत्री बनने से पहले ही ऊंची आवाज में बात कर चुके थे. उस दौर में इंदिरा गांधी के साथ इस तरह की बात कोई नहीं करता था. इंदिरा राजनीतिज्ञ थीं, उन्होंने इस ‘बेअदबी’ का अपने समय से जवाब दिया.

छात्रों के आंदोलन की वजह से 'चिमन चोर' कहलाए जा रहे चिमन भाई को सत्ता छोड़नी पड़ी. गुजरात भर में चल रहे इस आंदोलन को देखकर ही जेपी यानी जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए हां किया. चिमनभाई से इंदिरा गांधी ने इस्तीफा तो ले लिया मगर इमरजेंसी की आंच में वो खुद भी सत्ता से बेदखल हो गईं. इसके बाद इंदिरा को वापसी करने में जहां महज तीन साल लगे, चिमनभाई 16 साल बाद वापस आ पाए.अस्सी के पूरे दशक में चिमनभाई और पटेल राजनीति हाशिए पर रही.

अपने दूसरे कार्यकाल में चिमनभाई ने नर्मदा को गुजरात की लाइफलाइन मानते हुए सरदार सरोवर प्रोजेक्ट को पूरा करवाने पर काम किया. ये बांध उसी समय से विवादों में था और 1994 में 17 फरवरी को अचानक चिमनभाई की मौत हो गई. इसके बाद सरदार सरोवर बांध के विवाद बढ़ते रहे और जब तक सुलझे चिमनभाई की राजनीति को सामने से देखने वाली पीढ़ी मार्ग दर्शक बन चुकी थी.

 

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