ख़ैबर दर्रा: जहां सिकंदर-ए-आज़म से लेकर अंग्रेज़ों तक, सबका गुरूर मिट्टी में मिल गया - BBC News हिंदी

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ख़ैबर दर्रा: जहां सिकंदर-ए-आज़म से लेकर अंग्रेज़ों तक, सबका गुरूर मिटटी में मिल गया

बाब-ए-ख़ैबर और तोरखम के बीच का यह क्षेत्र, बुरी नीयत से आने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए इतने खतरों से भरा हुआ है जिसकी मिसाल कहीं और नहीं मिलती है. यही वजह है कि दुनिया और इस इलाक़े में विजेता कहलाने वाला कोई शासक, इस दर्रे और यहां रहने वालों को काबू में नहीं कर सका.इस रास्ते के दोनों ओर करीब डेढ़ हजार फीट ऊंची पहाड़ी चट्टानें हैं और इनके बीच में गुफाओं की भूल भुलैया हैं. यहां के लोगों के लिए यह दर्रा एक ऐसी प्राकृतिक घेराबंदी है जिसे दुनिया के किसी भी जंगी हथियार से नहीं जीता जा सकता है.

करीब दो साल में इसका निर्माण पूरा हुआ. द्वार पर लगे बहुत से शिलालेखों पर उन शासकों और आक्रमणकारियों के नाम लिखे हैं, जिन्होंने इस मार्ग का इस्तेमाल किया है. वो कहते हैं कि अफरीदी कबीलों के इस कड़े प्रतिरोध के कारणों का पता लगाने के लिए सिकंदर की मां ने उनसे कहा कि इस क्षेत्र के कुछ निवासियों को दावत पर उनके पास भेजा जाये.

जाने-माने पत्रकार अल्लाह बख्श यूसुफी ने अपनी प्रसिद्ध किताब 'तारिख-ए-अफरीदी' में लिखा है, कि ख़ैबर दर्रे के क्षेत्र में बड़ी संख्या में बौद्ध पुरातत्व स्थल पाए गए. लेकिन अपनी मान्यताओं के कारण पख्तून इन मूर्तियों के खिलाफ थे और उन्हें तोड़ देते थे. इसलिए, ख़ुद को मजबूत करने के बाद, उन्होंने एक बार फिर 1519 में दोबारा ख़ैबर को विजय करने की ठानी. एक भीषण युद्ध के बाद ज़हीरुद्दीन बाबर अली मस्जिद में केवल एक रात बिता सका. वे जमरूद तो पहुंच गए, लेकिन उन्होंने सोचा कि अगर वे पंजाब गए, तो ऐसा न हो कि वापसी पर ये क़बाइली उनका रास्ता काट दें.सिख शासक रणजीत सिंह को यक़ीन था कि पख्तूनों पर सत्ता बनाए रखने के लिए एक मजबूत हाथ की जरूरत थी.

अफ़ग़ानिस्तान में दो साल रहने के बाद, जब अंग्रेज हार गए, तो वे अपनी सहयोगी सेना, यानी सिखों को लेकर वापिस लौटे, तो ख़ैबर दर्रे के अंदर अफरीदी क़बाइलियों ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया कि उनके होश उड़ गए.ख़ैबर दर्रे के अंदर अली मस्जिद के स्थान पर अंग्रेज़ों की तोपें और बंदूकें सब कुछ अफरीदी क़बाइलियों ने छीन लीं.

 

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विश्व मे केवल सिख साम्राज्य ही ह जिसने खैबर दर्रे पर विजय प्राप्त की ओर उसकी याद में महाराजा रंजीत सिंह के सेनापति हरि सिंह नलवा ने जमरूद पेशावर में किला बनवाया। आज भी अफगान औरते अपने बच्चों को सुलाने के लिए कहती हैं :- चुप हो जा बच्चे नही तो हरिया आ जायेगा।

ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲੂਅਾ ਨੇ ੲੇਹ ੲਿਲਾਕਾ ਜਿੱਤ ਲਿਅਾ ਸੀ...

कृपया देखे 2022 मे होने वाले हैं इन राज्यों में चुनाव

सिकन्दर के समय यह गेट नही था न ही वह इतिहास जिसको तुम लोग बताते हो। न कोई खैबर ऐबर था। वो पोरस था जिसने सिकन्दर को धूल चटा दी खैबर-पख्तूनख्वा का प्राचीन नाम गांधार है और इस क्षेत्र के लिए बौद्ध अनुयायियों के मन में अपार श्रद्धा है।

सिकन्दर के समय यह गेट नही था न ही वह इतिहास जिसको तुम लोग बताते हो। न कोई खैबर ऐबर था। वो पोरस था जिसने सिकन्दर को धूल चटा दी

दर्रा है .. बहुत लोगों के होने का जर्रा है ... जीवन खाक भी हो जाए.. फिर भी.. ये कभी नहीं हो अधेख.. ऐसा फर्रा है..🎭

यहीं से विदेशी आक्रमणकारी आते थे..लेकिन चीन की रोकने का प्रयास नहीं किया गया। भारत राजा आपस में ही लड़ते रहते थे। पोरस,आंभी.. पृथ्वीराज चौहान.. जयचन्द।

गुरुर में चूर .. होके मगरुर.. रूसुख से खुद के .. खुद सब कुबूल..🎭

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