क्या अपने ही दिए फैसले पर फिर फैसला दे सकते हैं जज? | DW | 17.10.2019

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ऐसे कई मामले थे जिनमें जमीन का अधिग्रहण बाकी था क्यूंकि या तो हर्जाने का भुगतान नहीं किया गया था या जमीन मालिकों ने जमीन देने से मना कर दिया था. LandAcquisitionAct SupremeCourt Indiancourt Courtverdict

इस फैसले करने से पहले इस पीठ को एक फैसला और करना है. क्या एक जज जो उस पीठ का हिस्सा थे जिसने इन दोनों फैसलों में से एक सुनाया था इस बड़ी पीठ का हिस्सा हो सकते हैं? या यूं कहें कि क्या एक जज अपने ही दिए हुए फैसले पर दोबारा फैसला दे सकता है?

ऐसे कई मामले थे जिनमें जमीन का अधिग्रहण बाकी था क्यूंकि या तो हर्जाने का भुगतान नहीं किया गया था या जमीन मालिकों ने जमीन देने से मना कर दिया था. नए कानून के लागू होते ही ऐसे कई मामले देश भर की अदालतों में दायर किये गए. पुणे नगरपालिका से सम्बंधित एक केस सर्वोच्च न्यायालय पंहुचा और इस केस में 24 जनवरी, 2014 को न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा, मदन लोकुर और कुरियन जोसफ की तीन-सदस्यीय पीठ ने फैसला सुनाया.

कुछ दिनों बाद न्यायमूर्ति लोकुर, जोसफ और दीपक गुप्ता की अदालत में धारा 24 से जुड़ा एक और मामला आया और उसकी सुनवाई के दौरान पीठ को बताया गया कि पुणे नगरपालिका वाले फैसले को अमान्य घोषित कर दिया गया है. यह सुन कर न्यायमूर्ति लोकुर ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में धारा 24 से जुड़े सभी मामलों पर तब तक रोक लगा दी जब तक इस द्वन्द का समाधान नहीं निकलता.

12 अक्तूबर, 2019 को इसी मामले के समाधान के लिए पांच जजों की संविधान पीठ का गठन हुआ और इसके नेतृत्व का जिम्मा न्यायमूर्ति मिश्रा को सौंपा गया. अब विवाद ये है न्यायमूर्ति मिश्रा ही खुद ये फैसला कैसे कर सकते हैं कि उनका फैसला सही था या उसे अमान्य घोषित करने वाला फैसला सही था. न्यायमूर्ति मिश्रा ने इस आपत्ति पर बेहद नाराजगी व्यक्त की है और कहा है कि ऐसी अपीलों के जरिये लोग विशेष पीठों को निशाना बनाना चाहते हैं.

 

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