अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का रहस्यमयी हालत में निधन हो गया है। फिलहाल मामला आत्महत्या का लग रहा है। दावा किया जा रहा है कि महंत ने 7 से 8 पन्ने का एक सुइसाइड नोट भी लिखा है जिसके आधार पर उनके शिष्य आनंद गिरि, लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को गिरफ्तार किया जा चुका है।महंत नरेंद्र गिरि और उनके शिष्य आनंद गिरि के बीच तनातनी की बात पिछले दिनों सुर्खियों में रही थी। हालांकि, बाद में आनंद ने गुरु के पांव पकड़कर माफी मांगी और गुरु...
Narendra Giri Death: महंत नरेन्द्र गिरि और आनंद गिरि के बीच क्या था वो विवाद, जब गुरु से शिष्य ने पैर पकड़कर मांगी थी माफीइनके बीच हिंसक संघर्ष को रोकने के लिए ही कुंभ मेलों में स्नान के लिए विभिन्न अखाड़ों का क्रम तय होता है। बात कुंभ की चली है तो यह जानना काफी दिलचस्प होगा कि वर्ष 1310 में आयोजित महाकुंभ में रामानंद वैष्णवों और महानिर्वाणी अखाड़े के बीच खूनी झड़प हो गई थी। फिर वर्ष 1760 में भी वैष्णव और शैव मत के साधुओं के बीच गंभीर संघर्ष हुआ था। फिर 1796 के कुंभ में शैव और निर्मल संप्रदाय...
बहरहाल, देश में अभी 14 अखाड़े हैं। विभिन्न संप्रदायों के मुताबिक, इन अखाड़ों के नाम और उनके मुख्यालयों की जानकारी नीचे दी जा रही है...2. पंच अटल अखाड़ा - चैक हनुमान, वाराणसी5. पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमना घाट, वाराणसी7. पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरिनगर, भवनाथ, जूनागढ़9. निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गढ़ी, अयोध्या11. पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयागराजNarendra giri death: बाघंबरी गद्दी का उत्तराधिकार, मठ की संपत्तियां या शिष्यों से विवाद...
Narendra Giri Death News: मौत से एक दिन पहले महंत नरेंद्र गिरी ने क्यों मंगाई थी रस्सी? राज जो अभी खुलने बाकीआज से करीब 1,300 साल पहले आदि शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई मठ स्थापना की परंपरा कालक्रम में तेजी से फली-फूली और आज देश के हर हिस्से में विभिन्न संप्रदायों के साधुओं के मठ हैं। कुंभ नगरी प्रयागराज में भी सभी संप्रदायों के मठ हैं। उनकी धर्मशालाएं भी हैं और मंदिर भी। यहां से जुड़े श्रद्धालुओं का आने-जाने का तांता लगा रहता है। वो यहां पूजा-पाठ के लिए आते हैं। उन्हें मठ की तरफ से पुजारी...
संतों की चकाचौंध भरी जिंदगी को लेकर संत समाज के अंदर भी मतभेद होते रहते हैं। कई संत रईसी में रहने वाले संतों को ढोंगी बताने से भी नहीं चूकते। वो पूछते हैं कि जो साधु बन चुके हैं, उन्हें मठ और ट्रस्ट आदि बनाने की क्या जरूरत है? लेकिन, हमें समझना होगा कि मठ और अखाड़े सिर्फ धर्म-अध्यात्म तक सीमित नहीं रहते हुए राजनीतिक रिश्ते कायम करने में जुट गए हैं। स्वाभाविक है कि किसी भी संस्था, संगठन या समूह में राजनीति का प्रवेश मतभिन्नता को हिंसक बनाने में सहायक तो होता ही है।दरअसल, यही वजह है कि कुछ मठाधीश...
व्यभिचार के अड्डे बने हुए हैं आजकल तो !! देशहित में कोई योगदान हो तो बताएँ इसी तरह मदरसे हैं उनका भी योगदान देशहित में नगण्य है ।
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