कोरोना महामारी: लड़ाई वैकल्पिक नहीं, अनिवार्य है

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कोरोना महामारी: लड़ाई वैकल्पिक नहीं, अनिवार्य है coronavirus covid19 coronainIndia HemantSharma

वाले किसी तरह शव को एंबुलेंस तक पहुंचाते हैं। कोरोना इंसान को ही नहीं, रिश्तों को भी संक्रमित कर रहा है। आदमी के साथ रिश्तों की भी मौत हो रही है। संक्रमित होते ही अपने पराये हो जा रहे हैं। रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है। भयानक संकट के इस दौर में समाज की सारी विद्रूपताएं पूरी नंगई से चौतरफा उग आई हैं। जीवन के मायने बदल गए हैं। मौत सिर्फ अंकगणित हो गई है। हमारी संवेदनाएं मर गई हैं। लोगों का असमय जाना भी अब पथराये मन को परेशान नहीं करता। लगता है, कोरोना के बाद की दुनिया और भयावह...

गोमतीनगर के उनके घर में उनकी कोरोना से मृत देह बैकुंठ धाम में विलीन होने के लिए चार कंधों का इंतजार करती रही, पर कोई नहीं आया। आखिरकार पुलिस ने अंतिम संस्कार किया। समूची दुनिया को एक कुटुंब मानने वाले इस देश में रिश्तों पर कोरोना भारी पड़ रहा है। आज नहीं, तो कल कोरोना चला जाएगा। पर जो छोड़ जाएगा, उसमें हमारी प्रकृति बदल जाएगी। समाज बदल जाएगा। हमारी संवेदनाएं बदल जाएंगी। रिश्ते बदल जाएंगे। एक विचार है कि कोरोना के आगे सरकारें फेल हो गई हैं। सरकार और सिस्टम पर सवाल उठाना आपका हक है। पर यह भी...

हम अपने इर्द-गिर्द ऐसे ही संवेदनहीन लोगों से घिरे हैं। जब समाज ऐसा अमानवीय व्यवहार कर रहा हो, तो उसे नियंत्रित करने वाला तंत्र कैसे मानवीय हो सकता है? कैसे तय होगी तंत्र की जवाबदेही? उस महान संस्कृति को याद रखिए, जिसके हम ध्वजवाहक हैं। मृत्यु के भय से निकलना होगा। वह तो आनी ही है। पर तब तक हम यह तो समझें कि इस दुनिया में हम क्यों आए थे? यह महामारी किसी एक के बस की नहीं। विषाणु रक्तबीज की तरह खुद को फैला रहा है। उससे लड़ने वाले तंत्र को भी उतना ही विशाल बनाना होगा। वह बनेगा हमारे आपके साथ खड़े...

वाले किसी तरह शव को एंबुलेंस तक पहुंचाते हैं। कोरोना इंसान को ही नहीं, रिश्तों को भी संक्रमित कर रहा है। आदमी के साथ रिश्तों की भी मौत हो रही है। संक्रमित होते ही अपने पराये हो जा रहे हैं। रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है। भयानक संकट के इस दौर में समाज की सारी विद्रूपताएं पूरी नंगई से चौतरफा उग आई हैं। जीवन के मायने बदल गए हैं। मौत सिर्फ अंकगणित हो गई है। हमारी संवेदनाएं मर गई हैं। लोगों का असमय जाना भी अब पथराये मन को परेशान नहीं करता। लगता है, कोरोना के बाद की दुनिया और भयावह होगी।इस शताब्दी...

कर लेंगे, मशीनरी क्या कर लेगी, जब समाज की संवेदनाएं ही मर गई हैं? इस कोविड काल में समाज नंगा हो गया है। कोई कोशिश नहीं होती कि सुरक्षित रहते हुए दुखी, लाचार, बेसहारा के साथ खड़े हुआ जाए। आखिर डॉक्टर और पुलिस वाले तो अपने काम को अंजाम दे ही रहे हैं। मत भूलिए, सरकार भी इसी समाज का हिस्सा है।

 

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