कोरोना लॉकडाउन के बीच क्षय रोग के मामलों में आई कमी, जानें क्या है पूरी सच्चाई

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कोरोना लॉकडाउन के बीच क्षय रोग के मामलों में आई कमी, जानें क्या है पूरी सच्चाई coronavirus tuberculosis

सामने आए। जिनमें से 83,697 सरकारी अस्पताल और बचे 30,763 निजी अस्पताल से आए। हालांकि कोरोना को कहर मार्च की शुरुआत में रडार पर आया था।

क्षय रोग के अधिकारी संतोष गुप्ता ने बताया कि सभी जमीनी कार्यकर्ता कोरोना से लड़ने में जुटे हैं, सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवा बंद हैं और निजी अस्पतालों भी बंद हैं। यहां तक कि जिन मरीजों में क्षय रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, उनकों भी सुविधा नहीं मिल पा रही है। इसलिए इसकी अधिसूचना को फिलहाल रोक दिया गया है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को गाइडलाइंस जारी की जिसमें इबोला के समय स्वास्थ्य सुविधाओं को पटरी पर लाने के लिए किए गए कार्यों का उल्लेख है। 2014-15 के इबोला के विश्लेषण से ये बात सामने आती है कि इबोला से मरने वालों की संख्या इतनी इसलिए बढ़ी क्योंकि खसरा, मलेरिया, एचआईवी और क्षय रोग के मरीजों ने स्वास्थ्य सुविधाओं पर असर डाला था।

कोरोना वायरस के खतरे के बीच स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंध को बनाए रखने पर जोर दिया है। इस वक्त ज्यादातर स्वास्थ्य सुविधाएं कोरोना के खिलाफ लड़ने में व्यस्त है, ऐसे में क्षय रोग एक बड़ी जनहानि के तौर पर उभर सकती है। सामने आए। जिनमें से 83,697 सरकारी अस्पताल और बचे 30,763 निजी अस्पताल से आए। हालांकि कोरोना को कहर मार्च की शुरुआत में रडार पर आया था।

क्षय रोग के अधिकारी संतोष गुप्ता ने बताया कि सभी जमीनी कार्यकर्ता कोरोना से लड़ने में जुटे हैं, सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवा बंद हैं और निजी अस्पतालों भी बंद हैं। यहां तक कि जिन मरीजों में क्षय रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, उनकों भी सुविधा नहीं मिल पा रही है। इसलिए इसकी अधिसूचना को फिलहाल रोक दिया गया है।

 

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लोक डाउन में मरीज अस्पतालो तक नहीं पहुंच रहे है उसका प्रभाव है ना कि बीमारी खत्म हो गई।

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