मणिपुर के एक छात्र रिचर्ड कमेई कहते हैं कि दूसरी जगहों के मुकाबले कैंपस का माहौल फिर भी संवेदनशील है, लेकिन अन्य जगहों पर आमतौर पर भेदभाव होता ही है.
वह बताते हैं,"लोकल ट्रेन में सफर करते समय कोई भी कॉमेंट कर देता है. अगर मैं सिर्फ म्यूज़िक भी सुन रहा हूं, तब भी वो मुझे तुच्छ महसूस कराने वाली बातें करते हैं. अगर मैं अपनी मातृभाषा में माता-पिता से बात कर रहा हूं, तो कुछ लोग कौतूहल भरी निगाह से मुझे देखते हैं या मेरा मज़ाक उड़ाते हैं." जीत बताते हैं,"लोग हमसे पूछते हैं कि तुम कहां से हो. कई बार लोग स्वाभाविक जिज्ञासा के तहत हमारे बारे में जानना चाहते हैं. लेकिन अक्सर लोग असंवेदनशील होते हैं. वो मान लेते हैं कि हम लोग किसी और देश से आते हैं. हम देश के बाकी लोगों जैसे नहीं दिखते हैं, तो वो हमें बाहरी कहते हैं और राष्ट्रीयता साबित करने को कहते हैं. कोरोना वायरस ने एक बार फिर उजागर कर दिया कि वो हमारे बारे में जानना ही नहीं चाहते हैं.
एक और छात्र ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा,"हम मानते हैं कि हम अलग दिखते हैं और हमें पता है कि हमारे प्रति लोगों की प्रतिक्रियाएं और बर्ताव अलग होंगी. लेकिन हमें मुंबई में इसकी उम्मीद नहीं थी. यह बहुत बड़ा शहर है, जहां अलग-अलग इलाकों के लोग रहते हैं. हम मुंबई शहर को कॉस्मोपॉलिटन शहर मानते हैं." कई छात्रों ने यह भी बताया कि क्यों ऐसी घटनाएं उन्हें तक़लीफ पहुंचाती हैं और क्यों कई मौकों पर वो असहाय महसूस करते हैं. एक छात्र ने बताया,"कुछ मौकों पर जब हमने इस भेदभाव पर असहमति जताई, तो लोगों ने गु़स्से में और हिंसात्मक तरह से जवाब दिया. ऐसी किसी घटना से बचने के लिए हम चुप रहते हैं और बात टाल जाते हैं."
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