कृषि कानूनों की किस बात से किसानों को है परेशानी, क्यों नहीं निकल रहा समस्या का समाधान

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कृषि कानूनों की किस बात से किसानों को है परेशानी, क्यों नहीं निकल रहा समस्या का समाधान FarmersBill PMOIndia nstomar

की हालत सुधरेगी, इससे उनकी आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। लेकिन पारित किए गए कानूनों ने किसानों की नाराजगी बढ़ा दी है। किसानों ने कहा है कि अगर ये कानून अस्तित्व में रहते हैं तो इससे किसान कंपनियों के गुलाम बन जाएंगे। पढ़िए किस कानून के किस बिंदु से किसानों को है परेशानी और अब सरकार ने उनमें क्या बदलाव लाने पर जताई है सहमति-

इसे लेकर किसान बिहार का उदाहरण देते हैं जहां साल 2006 से ही एपीएमसी मंडी व्यवस्था समाप्त कर दी गई थी, लेकिन आज तक यहां के किसानों की स्थिति नहीं सुधरी। बिहार के किसान आज भी बड़े व्यापारियों के सहारे अपनी फसल पंजाब-हरियाणा की एमएसपी वाली एपीएमसी मंडियों में बेचते हैं। छोटे किसान यह भी नहीं कर पाते और उनकी हालत बिल्कुल खराब हो चुकी है।

किसानों की चिंता है कि इससे किसानों की जमीन कॉरपोरेट घराने हड़प लेंगे। करार के बाद किसान का अपनी ही जमीन-फसल पर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा। बाद में काम के अभाव में किसान इन्हीं जमीनों पर मजदूरी करेंगे। किसानों की चिंता है कि एसडीएम जैसे अधिकारी कंपनी की बात सुनेंगे और किसान अपनी बात नहीं कह पाएंगे। इस मामले में सिविल कोर्ट में मुकदमा चलाने की अनुमति होनी चाहिए।

लेकिन खरीद और भंडारण की सीमा हटाने से कंपनियां लाभ की लालच में ज्यादा खरीद करेंगी, और इसके लिए वे कोल्ड स्टोरेज बनवाएंगी। इससे किसानों की ज्यादा फसल खरीद होगी और उन्हें लाभ होगा। जबकि कानून के विरोधियों का कहना है कि अगर कोई व्यापारी भारी मात्रा में खरीद कर लेगा तो बाद में वह ब्लैक मार्केटिंग के जरिए भारी धन कमाएगा। इससे उस वस्तु की कीमतों में भारी उछाल आएगा और आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाएंगी।

इस कानून पर किसानों की आपत्ति है कि अगर एपीएमसी मंडियों से बाहर खरीद होगी तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिेलेगा। ज्यादा कीमत की लालच में किसान खुले बाजार में फसल बेचेंगे, इससे एपीएमसी मंडियां अप्रासंगिक हो जाएंगी और बाद में सरकार को इन्हें बंद करने का बहाना मिल जाएगा। इसके बाद धीरे-धीरे सरकार एपीएमसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म कर देगी।

किसानों की चिंता है कि इससे किसानों की जमीन कॉरपोरेट घराने हड़प लेंगे। करार के बाद किसान का अपनी ही जमीन-फसल पर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा। बाद में काम के अभाव में किसान इन्हीं जमीनों पर मजदूरी करेंगे। किसानों की चिंता है कि एसडीएम जैसे अधिकारी कंपनी की बात सुनेंगे और किसान अपनी बात नहीं कह पाएंगे। इस मामले में सिविल कोर्ट में मुकदमा चलाने की अनुमति होनी चाहिए।

 

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PMOIndia nstomar सरकार अपनी मूर्खता के कारण पहले से ही वोट लेने के चक्कर में गलत वायदा में फंस चुकी है। अब उसे अपनी जान निकलने का आभास हो रहा है। बिना मेहनत के दूसरे को मलाई खिलाना से ऐसी ही हालत बनती है।

हमने इस समाचार को संक्षेप में प्रस्तुत किया है ताकि आप इसे तुरंत पढ़ सकें। यदि आप समाचार में रुचि रखते हैं, तो आप पूरा पाठ यहां पढ़ सकते हैं। और पढो:

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