कुरुक्षेत्र: हिंदुत्व-असमिया पहचान और सत्ता संघर्ष के दांवपेंच में फंसा असम

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कुरुक्षेत्र: हिंदुत्व-असमिया पहचान और सत्ता संघर्ष के दांवपेंच में फंसा असम CABBill2019 CABPassed CABProtests VinodAgnihotri7

की होड़ ने उस घी का काम किया है, जिससे नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 को लेकर सुलग रही चिंगारी आग बन कर भड़क उठी। देखते देखते पूर्वोत्तर का यह द्वार असंतोष और विरोध प्रदर्शन की ज्वाला में इस कदर जल उठा कि राजधानी गुवाहाटी में कर्फ्यू लगाकर सेना बुलानी पड़ी।

इसे लेकर अस्सी के दशक में अखिल असम छात्र संघ के नेतृत्व में व्यापक असम आंदोलन हुआ था और जिसका समाधान राजीव गांधी सरकार के साथ असम आंदोलनकारियों के साथ हुए असम समझौते के रूप में हुआ। जिसमें माना गया कि 1971 के बाद असम में आए बाहर के सभी लोगों की पहचान की जाएगी और इसके लिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाया जाएगा। इसके बावजूद यह मामला लटका रहा और लंबा खिंचता गया।

इस संशोधन विधेयक के जरिए एक तरफ तो तो असम में एनआरसी से बाहर हुए लाखों गैर मुस्लिमों जिनमें अधिसंख्य हिंदू हैं को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हिंदुत्व के ध्रुवीकरण होने की भी उम्मीद है। उसे लगता है इसका लाभ उसे आने वाले सभी चुनावों में मिल सकता है। लेकिन असम और त्रिपुरा शांत नहीं हो रहे हैं और आशंका है कि यह आग कहीं पूरे पूर्वोत्तर को अपनी चपेट में न ले ले। असम के स्थानीय लोगों की आशंकाओं को तब और बल मिला जब नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 में पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों मणिपुर, नगालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को इस कानून की परिधि से बाहर रखकर वहां इनर लाइन परमिट की व्यवस्था लागू रहने का प्रावधान किया गया।

कांग्रेस सरकार में कभी तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के लिए सिरदर्द बने रहे हिमंत विश्वासर्मा बेहद साधन संपन्न और सियासत के चतुर खिलाड़ी माने जाते हैं। राज्य का मुख्यमंत्री बनने की उनकी चाहत कांग्रेस सरकार के समय से ही है और 2016 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस नेतृत्व से मुख्यमंत्री बनाए जाने का आश्वासन न मिलने से नाराज विश्वासर्मा ने चुनाव से पहले ही भाजपा का दामन थामकर राज्य की सत्ता से कांग्रेस की विदाई और भाजपा की जीत में अहम भूमिका...

शुरुआती वजह जो भी रही हो लेकिन खुफिया सूत्रों के मुताबिक विरोध और असंतोष को हवा देने वाले इस आंदोलन में आल असम स्टूडेंट्स यूनियन , अन्ना आंदोलन के दौरान सुर्खियों में आए अखिल गोगोई के नेतृत्व वाले किसान मजदू संग्राम समिति के साथ ही असम आंदोलन के समर्थकों और लगभग खत्म हो चुके प्रतिबंधित अलगाववादी संगठन अल्फा के घर बैठ चुके कार्यकर्ता और समर्थक भी कूद पड़े हैं।

मुसलमानों को इस आधार पर इससे बाहर रखा गया कि क्योंकि ये तीनों देश इस्लामिक राष्ट्र हैं, इसलिए मुस्लिम वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों की श्रेणी में नहीं आते और न ही उनका धार्मिक आधार पर उत्पीड़न होता है।इस संशोधन विधेयक के जरिए एक तरफ तो तो असम में एनआरसी से बाहर हुए लाखों गैर मुस्लिमों जिनमें अधिसंख्य हिंदू हैं को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हिंदुत्व के ध्रुवीकरण होने की भी उम्मीद है। उसे लगता है इसका लाभ उसे आने वाले सभी चुनावों में मिल सकता...

 

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VinodAgnihotri7

VinodAgnihotri7 देख लीजिए पहचान लीजिए देश को आग कौन लगा रहे है ,ये वही लोग हैं जो रवीश कुमार की वाल पर शांति की बात करते हैं । और खुन से सने रेमेन मैग्सेसे पुरस्कार पाने वाला कॉमरेड पत्रकार पूछते हैं क्या हो जाएगा अगर इनकी तादात हिन्दुओं से ज्यादा हो गई तो

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