किताबों से ओझल भारत का स्वर्णिम इतिहास, जानिए- क्‍या रही इसके पीछे वजह

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Opinion - किताबों से ओझल भारत का स्वर्णिम इतिहास, जानिए- क्‍या रही इसके पीछे वजह IndianHistory authorpranay BJP4India INCIndia

इतिहास घटित होता है, निर्देशित नहीं। दुर्भाग्य से इतिहास लेखन के नाम पर हम भारतीयों के मानमर्दन का जैसा सुनियोजित षड्यंत्र पराधीनता के दौर से चलाया गया, वह स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी निर्बाध जारी रहा। स्वतंत्र भारत में भी राष्ट्र के स्व एवं स्वाभिमान की रक्षा में सहायक इतिहास लेखन की दिशा में कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया गया। विचारधारा एवं दल विशेष के दिशानिर्देश पर इतिहास की घटनाओं का संकलन-विश्लेषण किया गया। पूर्व से तय निष्कर्षों को परिपुष्ट करने वाले इतिहासकारों-पुरातत्वविदों को...

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी पाठ्य पुस्तकों एवं अकादमिक बहसों में मौर्य, गुप्त एवं आधुनिक काल में मराठाओं जैसे कतिपय अपवादों को छोड़कर शेष सभी भारतीय राजवंशों मसलन-चोल, चालुक्य, पाल, प्रतिहार, पल्लव, परमार, मैत्रक, राष्ट्रकूट, वाकाटक, कार्कोट, काकतीय, सातवाहन, विजयनगर, मैसूर के ओडेयर, अहोम और सिख आदि तमाम प्रभावशाली राजवंशों एवं साम्राज्यों की चर्चा लगभग नगण्य रही। जबकि इनके सुदीर्घ शासन काल में अनेकानेक साधनसंपन्न नगर बसाए गए, लंबी-चौड़ी सड़कें बनवाई गईं, विख्यात शिक्षण केंद्रों की स्थापना की...

आज जर्मनी में हिटलर का कोई नामलेवा भी नहीं बचा है, वहीं भारत में आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें मुहम्मद गोरी, गजनी, तैमूर जैसे आततायियों पर गर्व है। जिस दिन देशवासियों के भीतर राष्ट्र के शत्रु-मित्र, जय-पराजय, मान-अपमान, गौरव-ग्लानि, हीनता-श्रेष्ठता का संतुलित बोध विकसित हो जाएगा, उस दिन समाज के एक सिरे से दूसरे सिरे तक एकता, सहयोग एवं सौहार्द की भावना स्वयं विकसित हो जाएगी। इतिहास की पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से हमें बताना होगा कि मजहब बदलने से पुरखे नहीं बदलते, उपासना-पद्धति बदलने...

रहीम, रसखान, दारा शुकोह, बहादुर शाह जफर, खान अब्दुल गफ्फार खान, एपीजे अब्दुल कलाम, आरिफ मोहम्मद खान जैसी शख्सीयतों पर किस भारतीय को गर्व नहीं होगा, परंतु नालंदा विश्वविद्यालय जैसे संस्थान को नष्ट करने वाले बख्तियार खिलजी के नाम को बचाए रखने की जिद का स्वतंत्र भारत में क्या कोई औचित्य होना चाहिए? क्या यह सच नहीं कि इतिहास की हमारी पाठ्य पुस्तकों में तथ्यों एवं घटनाओं का विवरण इस प्रकार किया गया है कि विदेशी आक्रांताओं के नाम तो याद रह जाते हैं, पर राष्ट्र के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाले चेहरे...

मध्यकालीन एवं आधुनिक भारत का पूरा इतिहास दिल्ली सल्तनत, मुगल वंश, ईस्ट इंडिया कंपनी, अंग्रेजों और स्वतंत्रता आंदोलन के नाम पर तत्कालीन कांग्रेस के कतिपय नेताओं के इर्दगिर्द सिमटकर रह गया है। आजादी के अमृत महोत्सव की इस स्वर्णिम बेला में हमें सच्चे एवं संतुलित इतिहास बोध या भारत बोध को विकसित एवं स्थापित करने की दिशा में इतिहास के पुनर्लेखन पर गंभीरता से कार्य करना चाहिए।

 

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