कितने अहम हैं चार साल में तीसरी बार हो रहे ब्रिटेन के आम चुनाव | DW | 12.12.2019

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कंजर्वेटिव टोरी पार्टी और वाम लेबर पार्टी के बीच हर एक सीट पर कांटे की टक्कर है. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन सही मायने में पहली बार देश के प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने की आकांक्षा लिए जनता के बीच गए हैं. Britain BorisJohnson Brexit

क्रिसमस की सरगर्मी कहीं ना कहीं चुनावी हलचल के सामने फीकी पड़ती नजर आई है. ब्रिटेन की आम जनता को अपनी ओर करने के लिए यूके के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने जम कर प्रचार अभियान चलाए. लेकिन असल मुकाबला इस बार भी दो सबसे बड़े ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच ही है. कंजर्वेटिव टोरी पार्टी और वाम लेबर पार्टी के बीच हर एक सीट पर कांटे की टक्कर है. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन सही मायने में पहली बार देश के प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने की आकांक्षा लिए जनता के बीच गए हैं.

वहीं लेबर नेता जेरेमी कॉर्बिन ने चुनाव जीतने पर अगले तीन महीनों में ब्रेक्जिट का एक नया मसौदा तैयार करने, यूरोपीय संघ से उसे पास करवाने और अगले तीन महीनों में ब्रिटिश जनता से उस पर रेफरेंडम करवाने का वादा किया है. हालांकि अपनी खुद की स्थिति साफ ना करने के कारण जनता यह नहीं समझ पा रही है कि कॉर्बिन ब्रेक्जिट के पक्ष में हैं या नहीं. इस बात पर टोरी नेता ने भी उन्हें कई बार घेरा है. चार साल में तीसरी बार हो रहा यह आम चुनाव देश की नई संसद को ब्रेक्जिट करवाने या न करवाने का जनादेश दे सकता है.

चुनाव पूर्व कराए गए ज्यादातर सर्वेक्षणों में जॉनसन की पार्टी को लेबर से 20 से 30 सीटें ज्यादा मिलने का अनुमान जताया गया है. लेकिन ब्रेक्जिट पर जनमत सर्वेक्षण के समय और 2017 के चुनावों में ऐसे अनुमान असल नतीजों से काफी दूर रहे. यही कारण है कि इस बार भी इन अनुमानों को त्रुटि की बड़ी संभावना के साथ ही देखा जाना चाहिए.

अगर जॉनसन को 650 सीटों वाली संसद में 320 से ऊपर सीटें नहीं मिलती हैं तो वह किसी छोटी पार्टी के साथ गठबंधन सरकार भी बना सकते हैं. वहीं दूसरी संभावना यह बनेगी कि लेबर पार्टी अपने नेता जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में स्कॉटिश नेशनल पार्टी और लिबरल डेमोक्रैट्स के साथ मिलकर सरकार बनाए. अगर ऐसा होता है तो कॉर्बिन अपने दो खंड वाले ब्रेक्जिट प्लान पर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे.

जून 2016 में ब्रिटेन को ईयू से बाहर निकालने के समर्थकों का सपना था कि इससे ब्रिटेन को उसके पुराने औपनिवेशिक काल वाले वैभवशाली दर्जे पर लौटाया जा सकेगा. ब्रिटिश हुकूमत ने एक समय जिस तरह करीब करीब आधे विश्व में अपने व्यापारिक संबंधों और औपनिवेशिक शासन के जरिए राज किया था, ब्रेक्जिट समर्थकों को उस वैभव को फिर से हासिल करने के सपने दिखाए गए. लेकिन आज की दुनिया में अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि भारत के साथ भी व्यापारिक समझौते करते समय भी ब्रिटेन सिर्फ अपने हित ऊपर नहीं रख सकता.

 

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