कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार की विदाई के बाद माना यह जा रहा है कि इस माह की शुरुआत में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर विधायकों के इस्तीफे के साथ शुरू हुए सियासी नाटक का पटाक्षेप हो गया है. विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने इसी विधानसभा के कार्यकाल में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है.
अतीत में प्रदेश के किसी भी चुनाव बाद गठबंधन की सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है. ऐसे में क्या भरोसा कि कांग्रेस और जेडीएस से किनारा कर परोक्ष रूप से येदियुरप्पा के साथ आने वाले विधायकों की निष्ठा भाजपा के साथ बनी रहेगी? कर्नाटक की सियासत का स्वरूप, अतीत और वर्तमान इसकी गवाही देते हैं. कर्नाटक विधानसभा का वर्तमान परिदृश्य काफी उलझा हुआ है. 224 सदस्यीय विधानसभा में बागियों को हटा दें तो कुल 205 विधायक हैं.
दोनों ने सत्ता तो गंवा दी, लेकिन हार नहीं मानी. बागियों को अब भी अपने पाले में लाने के प्रयास में कांग्रेस और जेडीएस के नेता अंदरखाने जुटे हैं और हर संभव प्रयास कर रहे हैं. अगर बागी विधायक सदन में उपस्थित हुए तो भाजपा को अपने पक्ष में उनके वोट की जरूरत होगी.विधायकों के इस्तीफे पर फैसले में देर का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन कोर्ट ने भी निर्णय स्पीकर पर छोड़ दिया. स्पीकर के फैसले ने भी गणित उलझा दी है.
Aaj tak so gaya hai isi liye shayad aaj tak jo ye nazar nhi aa rha ki rti kanoon sarkar ki kathputli ban chuki h or aaj tak chup baitha h wah kya baat h 👌
NareshJangde13 राज्पाल को सिर्फ 24 घंटे का वक्त देना चाहिए नाकि एक हप्ते का , क्या कारण है? ये बात दुनिया को भी पता चलना चाहिए।
Ali baba aur chalish chor
Sambhab kar dikha soke to credit aapki....
अवेध cm
आजतक कर देगा क्या ?
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