कराहती इंसानियत

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यह किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर देने के लिए काफी है कि जिस एक एंबुलेंस में एक शव को ही ठीक से कहीं से पहुंचाना संभव हो पाता है, उसमें इतनी संख्या में शव ले जाए गए।

समूची दुनिया के सभ्य और मानवीय समाजों में इंसान की मौत के बाद पर्याप्त गरिमा के साथ उसके शव का अंतिम संस्कार करना एक जरूरी रिवायत रही है। लेकिन अगर किसी वजह से अव्वल तो जीते-जी लोगों की जान बचाने की व्यवस्था नहीं हो और दूसरे कि मौत के बाद भी उनके शव को न्यूनतम सम्मान नहीं दिया जाए तो इसे कैसे देखा जाएगा! यह कल्पना भी दहला देती है कि एक एंबुलेंस में बाईस लोगों के शव भर कर श्मशान ले जाए जाएं, जहां उनका अंतिम संस्कार होना था। लेकिन महाराष्ट्र के बीड़ जिले में कोविड-19 की वजह से जान गंवाने वाले बाईस...

तबाही का इतिहास सामने होने के बावजूद उससे सबक लेना हमारी सरकारों ने जरूरी क्यों नहीं समझा और उससे बचाव के लिए समय रहते पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किया! सरकारों के इस सिद्धांत पर काम करने से ज्यादा अफसोसनाक और क्या हो सकता है कि जब प्यास से व्यापक पैमाने पर लोगों की जान जाने लगे तब कुआं खोदने का काम शुरू किया जाए। क्या इस रास्ते मौजूदा महामारी या अचानक आई किसी आपदा का सामना किया जा सकता है? दरअसल, जब किसी सरकार में दूरदर्शिता होती है तो वह न केवल वर्तमान की समस्याओं का हल निकालती है, बल्कि...

 

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