भारत सरकार की गृह मंत्रालय की ओर से नियुक्त एक समिति ने सुझाव दिया है कि असम के मूल निवासियों को परिभाषित करने के लिए 1951 को कट ऑफ साल बनाना चाहिए. इसके अलावा कमेटी ने सुझाव दिया है कि असम में बाहर के लोगों की आवाजाही पर नियंत्रण के लिए इनर लाइन परमिट जारी करने का कट-ऑफ वर्ष भी 1951 होना चहिए. इस वक्त असम समझौते के मुताबिक वैसे अवैध प्रवासियों को पहचान कर देश से बाहर करने का प्रावधान है जो राज्य में 1971 के बाद आए हैं, ऐसे लोग किसी भी धर्म के हो सकते हैं.
गृह मंत्रालय की इस कमेटी ने असम की विधानसभा और लोकसभा में मूल निवासियों को आरक्षण देने के लिए भी फॉर्मूला सुझाया है. कमेटी ने कहा है कि दोनों सदनों में राज्य के मूल निवासियों को 67 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए.मूल निवासियों के लिए 67 फीसदी आरक्षण के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भी 16 फीसदी सीटें आरक्षित की जाएंगी. इस तरह से आरक्षण का आंकड़ा 80 फीसदी से ऊपर जा सकता है. कमेटी ने राज्य सरकार की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 80 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की है.
सूत्रों के मुताबिक न्यायमूर्ति बिपल्ब कुमार शर्मा की अध्यक्षता वाली 13 सदस्यों वाली इस कमेटी ने रिपोर्ट तैयार करने के बाद गृह मंत्री अमित शाह को बता दिया है कि वो अब रिपोर्ट सौंपने को तैयार है. कमेटी ने गृह मंत्री से मिलने का समय भी मांगा है. माना जा रहा है कि इसी सप्ताह इस रिपोर्ट को गृह मंत्रालय को दिया जा सकता है.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कमेटी ने एकमत होकर सिफारिश की है कि जो लोग 1951 में असम के निवासी थे, उनके वंशजों को राज्य का मल निवासी माना जाएगा. चाहे उनका समुदाय, जाति, धर्म भाषा कुछ भी हो. ऐसे लोग असम के मूल निवासी माने जाएंगे.समिति ने यह भी सुझाया कि असम में ILP लागू किया जाना चाहिए ताकि राज्य के बाहर से लोगों की आवाजाही कंट्रोल की जा सके. बता दें कि नियमों के अनुसार बाहरी लोगों को ILP वाले क्षेत्रों में प्रवेश के लिए अधिकारियों से अनुमति लेनी होती है.
ये सही मार्ग हो सकता हैं
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