उत्तराखंड बीजेपी नेताओं में क्यों चुनाव से पहले बेचैनी बढ़ती जा रही है?

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यशपाल आर्य की 'घर वापसी' के बाद हरक सिंह रावत ने चुनाव लड़ने से किया मना yashpalarya HarakSinghRawat Uttarakhand

उमेश शर्मा कांग्रेस में शामिल होते-होते बचे

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे बीजेपी नेताओं की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है. पुष्कर धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे के बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद अब मंत्री हरक सिंह रावत ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. इसके अलावा बीजेपी विधायक उमेश शर्मा काऊ का रुख भी बदला-बदला नजर आ रहा.

बता दें कि मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में नौ विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. इसके अलावा यशपाल आर्य और एक अन्य विधायक ने 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज 2014 में कांग्रेस से बीजेपी में आए थे. इसके चलते हरीश रावत के अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ उत्तराखंड में जबरदस्त माहौल बना और उन्हें चुनाव में हार के बाद सत्ता गवांनी पड़ी.

सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत वरिष्ठता के नाते खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार कर रहे थे, लेकिन इन्हें मौका नहीं मिला. बीजेपी ने अपने पुराने नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता की कमान सौंप दी, लेकिन अब चुनाव से ठीक पहले उन्हें हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया और फिर 3 महीने के बाद जुलाई में बीजेपी ने युवा चेहरे के तौर पर पुष्कर सिंह धामी को सरकार की कमान सौंपने का निर्णय लिया.पुष्कर धामी के सीएम बनते ही कांग्रेस पृष्ठभूमि के तीन विधायकों की नाराजगी की खबरें सामने आ रही थी.

उत्तराखंड में जिस तरह से राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं, उससे बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी की चुनौती बढ़ती जा रही है. सत्ताविरोधी लहर दो सीएम बदलने के बाद भी खत्म नहीं हो रही है. किसान आंदोलन कुमाऊ के सियासी समीकरण को बिगाड़ कर रख दिया है, जो सीएम पुष्कर धामी के गढ़ में आता है. कांग्रेस का दलित सीएम के दांव का भी बीजेपी काट नहीं तलाश पा रही है. ऐसे में नेताओं के पार्टी को अलविदा कहने और चुनावी मैदान छोड़ने से बीजेपी के लिए चिंता बढ़ती जा रही है.

 

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