इनसाइड स्टोरीः सोवियत संघ के साथ कोल्ड वॉर के दौरान अमेरिका ने ऐसे बनाया था तालिबान

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दास्तान-ए-तालिबान: अमेरिका ने ऐसे बनाया था तालिबान Taliban Afghanistan

बीस साल तक अमेरिकी फौज अफगानिस्तान में जमी रही. इस दौरान अमेरिका ने अफगानिस्तान में 61 लाख करोड़ रुपये खर्च किए. बीस पहले जब अमेरिकन फौज अफगानिस्तान पहुंची थी, तब वहां तालिबान का राज था और बीस साल बाद जब अमेरिकी फौज की आखरी टुकड़ी वहां मौजूद है, तब भी अफगानिस्तान में तालिबान का ही राज है. यही वही तालिबान है, जिसे खुद अमेरिका ने अपने फायदे के लिए पैदा किया था.

ये कहानी 101 साल शुरू होती है. 1919 में अफगानिस्तान अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो चुका था. उसी के बाद अफगानिस्तान में राजशाही शुरू हुई. अगले 54 साल तक शाम परिवार ने वहां राज किया. अफगानिस्तान के आखरी राजा मोहम्मद जहीर शाह 1973 में बीमार हुए. इलाज के लिए उन्हें इटली जाना पड़ा. लेकिन उनके इटली जाते ही उनके सेनापति दाऊद खान ने तख्ता पलट कर दिया और खुद को अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.

इतना ही नहीं सामाजिक सरोकारों के चलते तारीकी सरकार ने अमीरों की जमीनें गरीबों में बांटनी शुरू कर दी. लेकिन नूर मोहम्मद तारीकी की आधुनिकीकरण की कोशिश और महिलाओं की आजादी, वहां के कई कबीलों को रास नहीं आई. उन्हें ये सब इस्लाम के खिलाफ लगा. और यहीं से मजहब के नाम पर नूर मोहम्मद तारीकी का विरोध शुरु हो गया.

मजहब के नाम पर ही तारीकी सरकार को गिराने के लिए अमेरिका ने सऊदी अरब को भी अपने साथ मिला लिया. इसी के बाद सऊदी अरब से बहुत सारे लोग सोवियत संघ और तारीकी सरकार से लड़ने के लिए अफगानिस्तान पहुंच गए. इन्हीं लोगों में से एक था ओसामा बिन लादेन. अफगान पर रूसी हमले के बाद अमेरिका को भी मौका मिल गया. अमेरिका ने मुजाहिदीनों को हवा दी और उन्हें रूसी सेना के खिलाफ लड़ने के लिए उकसाया. इस काम के लिए अमेरिका ने मुजाहिदीनों को तमाम हथियार, पैसे और यहां तक कि वीजा भी दे दिया. रूस ने अफगानिस्तान पर हमला तो कर दिया लेकिन पहाड़ियों और पथरीली जमीन की वजह से उन्हें परेशानी होने लगी. उनके लिए वहां टिकना आसान नहीं था. एयरफोर्स भी वहां उनकी मदद नहीं कर सकी. इसके बाद रूसी सेना लंबी लड़ाई के बाद वापस लौट गई.

 

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