आरटीआई के दायरे में आएगा चीफ जस्टिस का कार्यालय, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकार रखते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा, 'पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर नहीं करती है।'

आरटीआई के दायरे में आएगा चीफ जस्टिस का कार्यालय, सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकार रखते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा, "पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर नहीं करती है।" जनसत्ता ऑनलाइन Updated: November 13, 2019 2:59 PM तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक रूप से किया गया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय ‘सूचना के अधिकार’ के दायरे में आएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में माना कि सीजेआई का कार्यालय एक ‘पब्लिक अथॉरिटी’ है। ऐसे में दिल्ली हाई कोर्ट के...

यह फैसला चीफ जस्टिस समेत पांच जजों की संविधान पीठ ने दिया है। इस पीठ में जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपक गुप्ता शामिल हैं। गौरतलब है कि इसके पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में मुख्य न्यायाधीश के पद को आरटीआई कानून की धारा 2 के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ बताया था।दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और जनसूचना अधिकारियों ने 2010 में एक याचिका दाखिल की। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 4 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख...

Also Read केस की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। गौरतलब है कि जब चीफ जस्टिस के कार्यालय से सुभाष चंद्र अग्रवाल को जजों की संपत्ति के बारे में जानकारी नहीं दी गई, तो उन्होंने सीआईसी का रुख किया। सीआईसी ने सुप्रीम कोर्ट से इस आधार पर जानकारी देने को कहा कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी कानून के तहत आता है। जिसके बाद जनवरी 2009 में सीआईसी के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई...

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