आजादी के बाद से नक्शे में कितना बदला भारत, सीमाओं में आए क्या-क्या बदलाव, जानें सात दशक का सफर

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आजादी के बाद से नक्शे में कितना बदला भारत, सीमाओं में आए क्या-क्या बदलाव, जानें सात दशक का सफर IndependenceDay2020 74independenceday IndependenceDay indianmap

साल 1947 के बाद से भारत की बाहरी सीमा की बात करें तो उसमें कम ही बदलाव आए। हालांकि इस दौरान पीओके में पाकिस्तान और 1962 में चीन की साजिश का दंश भी हमें झेलना पड़ा। आजादी के बाद से अब तक बाहरी सीमा में तीन बड़े बदलाव आए।

इस समय भारत छोटे-छोटे राज्यों की जगह क्षेत्रीय सीमाओं में रेखांकित था। जैसे सौराष्ट्र। यह मुख्य रूप से पुरानी रियासतों पर आधारित प्रणाली ही थी।भाषा के आधार पर अलग राज्य की मांग सबसे पहले मद्रास स्टेट में उठी। 1953 में आंध्र स्टेट ने तेलुगु भाषियों के अलग अलग राज्य की मांग की। इसके बाद राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया।

इसी तरह अकाली दल ने पंजाबी सूबा आंदोलन चलाया, जिसकी वजह से पंजाबी बोलने वाले लोगों के लिए अलग राज्य बनाया गया। हिंदी बोलने और हिंदू बहुलता वाले क्षेत्र को हरियाणा का नाम दिया गया। 2000 के दशक की शुरुआत में उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ का जन्म हुआ। उत्तराखंड को यूपी से, झारखंड को बिहार से और छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग किया गया।2019 में जम्मू व कश्मीर को अलग कर दो केंद्र शासित प्रदेशों का गठन हुआ। जम्मू कश्मीर के अलावा लद्दाख को भी केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया।आजादी के 73 साल बाद भी कई क्षेत्रों से अलग राज्य की मांग लगातार उठती जा रही है।

1961 में गोवा को भारत में शामिल किया गया। 19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने इस क्षेत्र को मुक्त करवाया और गोवा भारत में शामिल हुआ।आजादी मिलने के कई साल बाद भी सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं था। 1975 में वह भारत में शामिल हुआ। 1947 में हुई संधि के मुताबिक सिक्किम की आजादी बरकरार रखी गई थी।इन रियासतों ने शुरुआत में किया विरोधआजादी मिलने के वक्त ऐसी भी कई रियासत रहीं, जो या तो पाकिस्तान के साथ विलय चाहती थी या फिर अपना स्वायत्त शासन चाहती थी। मगर भौगोलिक दृष्टि से यह संभव नहीं...

1956 में देश में 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश थे। देश में सबसे ज्यादा बदलाव इसी दौरान देखने को मिले। छह राज्य और पांच केंद्र शासित प्रदेश अभी भी अपनी सीमाओं को बरकरार रखने में सफल रही हैं।रोचक बात यह है कि पुनर्गठन आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों का गठन नहीं करने की सिफारिश की थी। मगर आंदोलनों के चलते इस सिफारिश को नहीं माना गया।

 

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